Description
कथा समय में तीन हमसफर
अलग परिवेश और पृष्ठभूमियों से आईं हिन्दी की तीन शीर्षस्थ लेखिकाएँ जिन्होंने बिना किसी आन्दोलनात्मक तेवर के और बगैर किसी आन्दोलनकारी समूह के सहयोग के, पाठकों के संसार में अपनी जगह बनाई। उन्होंने हमें अनेक कालजयी रचनाएँ दीं। उनसे हमारी उम्मीदें अभी भी बरकरार हैं।
कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी और उषा प्रियंवदा – नई कहानी के आरम्भिक दौर में, लेकिन नई कहानी आन्दोलन की छाया से बाहर अपनी निजी शैली, और अपने विशिष्ट तेवर के साथ अपनी पहचान बनाने वाले तीन बड़े नाम। यह पुस्तक इन तीनों की सहगामी, मित्र और गम्भीर पाठक रहीं प्रसिद्ध आलोचक निर्मला जैन द्वारा इनकी बुनत, उनके पाठ की बनावट और कृतियों के वैशिष्ट्य को समझने का प्रयास है।
निर्मला जी का कहना है : ‘‘कुल जमा किस्सा यह कि ‘नई कहानी’ को सुनियोजित आन्दोलन के रूप में चलाने की योजना जिन लोगों ने बनाई उन्हीं के समानान्तर बिना किसी आन्दोलनात्मक तेवर या मुद्रा अख्तियार किए, ये तीनों महिलाएँ पूरी निष्ठा और समर्पित मनोभाव से कहानियाँ लिख रही थीं।’’
‘‘उन्होंने कभी कोई परचम नहीं लहराया, सैद्धान्तिक फिकरेबाजी नहीं की। ‘स्त्रीवाद’ या ‘महिला लेखन’ के नाम पर कोई आरक्षित वर्ग खड़ा नहीं किया। किसी अतिरिक्त रियायत की अपेक्षा नहीं की।’’
ऐसी आत्मसम्भवा रचनाकारों पर उतनी ही बेबाक और स्वतंत्र चिंतक निर्मला जैन की यह पुस्तक इन कृतिकारों के विषय में सोचने-समझने के लिए प्रस्थान बिन्दु बनेगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
नई कहानी दौर की एक विशिष्ट कथा-त्रयी की रचनात्मकता पर एक मानक कलम से उतरी अनूठी आलोचना कृति।
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