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Description
क़िस्सा पौने चार यार
मनोहर श्याम जोशी भाषिक भंगिमाओं को बहुत दूर तक खींचने में सक्षम हैं यह निर्विवाद सत्य है जिसके चलते अनेक जगह प्रान्तीय हिन्दियों का संगम-सा रचना में उपस्थित हो जाता है। यह आंचलिकता सचेष्ट है – प्रत्येक पात्र किसी अलग ‘अंचल’ को बता सकने के उद्देश्य से चुना गया लगता है ताकि उसकी बोली-बानी अलग दिखाई-सुनाई दे।
उपन्यास की कहानी के केन्द्र में विस्थापितों के शहर दिल्ली में सरकारी क्वार्टरों में रहने वाली एक नसीब की मारी लड़की है और उसके साढ़े तीन प्रेमी हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों से रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आये हैं। पहला प्रेमी एक कंगला किशोर है जो अल्मोड़ा से दसवीं पास कर के अपने मामा के यहाँ आया हुआ है, दूसरा एक बंगाली है जो किसी अफ़सर का असिस्टेंट है और चालू-छलिया है। तीसरे एक अधेड़ तोंदियल हैं, जो करते क्या हैं यह किसी को नहीं पता लेकिन उनके पास चमचमाती नयी कार है। बोलने के लहज़े से लगता है कि पंजाबी हैं। साढ़े तीनवाँ प्रेमी उसके घर में उप-किरायेदार है और हमेशा कुछ पढ़ता रहता है जिससे ऐसा लगता है कि वह इंटैलैक्चुअल है। इसके अलावा लेखक है जो पत्रकार की हैसियत से साहित्य लिख रहा है। अल्मोड़ा वाले का बयान कुमाऊँनी हिन्दी में है, बंगाली बाबू का बयान बंगाली हिन्दी में और तीसरे प्रेमी का बयान पंजाबी में है।
हिन्दी को अलग-अलग शैलियों में किस तरह बोला जा सकता है, बोला जाता है, इसकी तलाश उन्होंने ‘क़िस्सा पौने चार यार’ से शुरू की। ऐसी कहानी जिसमें कई-कई कहानियाँ गुँथी हुई हों, अनेक पात्र हों, वाचिक भाषा की अलग-अलग शैलियाँ हों, हास्य-व्यंग्य के साथ करुणा-विडम्बना का बोध हो। कहानियों को कड़ीबद्ध रूप में कहा जा सकता है-यह पहली बार मनोहर श्याम जोशी के लेखन में ही दिखाई देता है। वह अपने समय से बहुत आगे के लेखक थे।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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