Description
लखनऊ से लाहौर तक
‘लखनऊ से लाहौर तक’ में श्रीमती प्रकाशवती पाल ने ऐसी अनेक ऐतिहासिक घटनाओँ और व्यक्तियों के संस्मरण प्रस्तुत किए हैं जिनसे उनका प्रत्यक्ष और सीधा सम्पर्क रहा है। संस्करण क्रम-बद्ध रूप में 1929 से शुरू होते हैं। उस वर्ष सरदार भगत सिंह ने देहली असेम्बली में बम फेंका था। लाहौर कांग्रेस में आज़ादी का प्रस्ताव भी उसी वर्ष पास हुआ था।
क्रान्तिकारी आन्दोलन में प्रकाशवती जी किशोरावस्था में ही शामिल हो गई थीं। अनेक संघर्षों और ख़तरनाक स्थितियों के बीच में चन्द्रशेखर आज़ाद, भगवती चरण, यशपाल आदि क्रान्तिकारियों के निकट सम्पर्क में आईं। एक अभूतपूर्व घटना के रूप में 1936 में उनका विवाह बन्दी यशपाल से जेल के भीतर सम्पन्न हुआ।
इन और ऐसी अनेक स्मृतियों को समेटते हुए ये संस्मरण आज़ादी की लड़ाई और बाद के अनेक अनुभवों को ताज़ा करते हैं, साथ ही अनेक राजनीतिज्ञों, क्रान्तिकारियों और प्रसिद्ध साहित्यकारों के जीवन पर सर्वथा नया प्रकाश डालते हैं। यह पुस्तक पिछले पैंसठ वर्षों के दौरान राजनीति और साहित्य के कई अल्पविदित पक्षों का आधिकारिक, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और पठनीय दस्तावेज़ है।
विषय क्रम
अध्याय
- लाहौर मेरे बाबुल की गलियां
- साथियों की गिरफ्तारी, हरिकृष्ण को फांसी, आज़ाद की शहादत
- मेरी गिरफ्तारी और रिहायी, जेल में यशपाल से भेंट, इलाहाबाद में बच्चन परिवार
- जेल में विवाह और जेल से रिहा
- विप्लव का प्रकाशन
- पुनः गिरफ्तारी और अंग्रेज़ी शासन का सूर्यास्त
- बटवारे का तूफान और हमारे मेहमान
- सांस्कृतिक गतिविधियां
- सद्भावना सम्पर्क और लेखक सम्मेलन
- ‘झूठा सच’ की योजना
- छठे दशक में जीवन
- नये देश नये लोग
- जासूस धर्मेन्द्र गोड़ का खेल
- मानद उपाधियां, अवसान, सहदेवसिंह का ताण्डव नृत्य
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