Mandakranta

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Author: Maitriye Pushpa

Availability: Out of stock

Pages: 116

Year: 2011

Binding: Hardbound

ISBN: 9788170167471

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

मंदाक्रान्ता

श्यामली। एक आदर्श गांव। छोटे-बड़े, जात-पाँत का भेदभाव नहीं। आपस में स्नेह, प्रेम, भाईचारा ऐसा कि लोग मिसाल दे, लेकिन आज श्यामली के लोग अपनी परछाईं तक पर विश्वास नहीं कर पाते। भाई-भाई के बीच रंजिश, घर-घर में क्लेश। जाने कैसा ग्रहण लग गया श्यामली की अच्छाई को ! कुछ भी वैसा न रहा, सिवाय दादा के। बस, बदलते वक्त की आँधी में यही एक बरगद बच रहा है श्यामली में।

और सोनपुरा ! गरीबी, बीमारी, भुखमरी और आपसी कलह से जूझता सोनपुरा आब सचमुच सोने-सा दमक रहा है। एकता और आत्मविश्यास से अजित स्वाभिमान और खुशहाली की दमक।

एक बहुत पुरानी कहावत है–‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।’ श्यामली का मन हार गया, सोनपुरा का मन जीत गया। एकता, प्रेम, भाईचारा, सदूभाव, सामाजिक चेतना आदि के बारे में हम बहुत बार भाषण सुनते रहते हैं और उन्हें किताबी बातें मानकर अनदेखा करते आए हैं, लेकिन सोनपुरा ने इन शब्दों के मर्म को समझ लिया शायद और उन्हें अपनी दिनचर्या में उतार लिया।

इन बातों ने गाँवों के प्रति मेरी धारणा, मेरे सरोकार और चिंतन को बेहद प्रभावित किया, जिसे मैंने अपने उपन्यास ‘इदन्नमम’ के माध्यम से अपने पाठकों के साथ बांटने की अपनी जिम्मेदारी का भरसक सावधानी और ईमानदारी से निर्वाह करने का प्रयास किया। उसी उपन्यास पर आधारित है प्रस्तुत नाटक मंदाक्रान्त।

–मैत्रेयी पुष्पा

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Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2011

Pulisher

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