Muktibodh Sahitya Mein Nayi Pravrittiyan
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Description
मुक्तिबोध साहित्य में नई प्रवृत्तियाँ
अपनी कविताओं में विचारों के आवेग को मुक्तिबोध अपने आत्मचित्रों से संतुलित और संवर्धित करते हुए उसमें हर बार एक नया रंग भरते चलते हैं। इस रूप में मुक्तिबोध आधुनिक यूरोपीय चित्रकारों की चित्रशैली और चित्रछवियों के अत्यंत निकट हैं। कविताएँ केवल शब्दों और लयों और विचारों से ही नहीं सजती, कविता में बीच-बीच में प्रकट होने वाले वे आत्मचित्र हैं जो उनके अन्तर्कथ्य को तराशते हैं।
उनका यह आत्म उतना ही क्षत विक्षत, उतना ही रोमानी, उतना ही यातनादायी है जितना खड़ी बोली के दूसरे कवियों का। मुक्तिबोध कम्युनिस्ट होते हुए भी ललकार के कवि नहीं हैं, ललकार के भीतर की मजबूरी के कवि हैं। यही वह भविष्य दृष्टि है जो उन्हें हिन्दी के दूसरे कवियों से अलग करती है। वे बाहर देखते जरूर हैं लेकिन आत्मोन्मुख होकर। उनकी नजर बाहरी दुनिया के तटस्थ काव्यात्मक कथन में नहीं है, बल्कि बाहरी दुनिया के भीतरी टकरावों में है। इसीलिए वे हिन्दी के एक अलग और अनोखे किस्म के कवि हैं जिनकी तुलना किसी से नहीं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2013 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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