Nibandhon Ki Duniya : Harishankar Parsai
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निबन्धों की दुनिया : हरिशंकर परसाई
परसाई का समग्र लेखन साहित्य की एक नई रुचि व संस्कार का परिचय देता है। इसीलिए उनकी रचनाओं को व्यंग्य एवं हास्य के पुट के बावजूद हल्के ढंग से या बिना गम्भीरता के नहीं लिया जा सकता। उनका साहित्य मूलतः अस्वीकार का साहित्य है। व्यवस्था के प्रति उसका स्वर प्रतिरोध और प्रतिवाद का है। वह व्यक्ति की गरिमा और स्वतन्त्रता के पक्ष में दृढ़ता से खड़ा होता है। परसाई के राजनीतिक लेखों में जो बात सबसे ज़्यादा हैरान करती है वो है सीधे टकराने की हिम्मत लेखक नाम लेकर सत्ता के ठेकेदारों की खिल्ली उड़ाता है। बहुत बार, वे शालीनता की सीमा पार करते भी दिखते हैं क्योंकि वे सत्ता के दोगले चरित्र को स्वीकार नहीं कर पाते। गणतन्त्र दिवस की झाँकियाँ उन्हें झूठ बोलती लगती हैं जो विकास और इतिहास की रम्य प्रदर्शनी के पीछे सक्रिय शोषण-तन्त्र का अहसास नहीं होने देती (ठिठुरता हुआ गणतन्त्र)। इन सभी स्थितियों पर कभी कभी वे इतने क्षुब्ध हो उठते हैं कि लिखते हैं ‘भारत को चाहिए : जादूगर और साधु’।
वास्तव में, इन राजनीति सम्बन्धी लेखों का दायरा इतना बड़ा है कोई भी कुचक्र उनकी दृष्टि से बचता नहीं। वो राष्ट्रीय स्तर पर बिहार के चुनाव हों (हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं) या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमरीका जैसे देश की मानव अधिकारों की रट। ‘मानवीय आत्मा का अमरीकी हूटर’ लिखते हए वे स्पष्ट करते हैं कि विश्व के सर्वसत्तावादी देश मानव मल्यों व मानव अधिकारों की दुहाई। देते हए भी अपनी नीतियों में मानव विरोधी हैं।। परसाई अपनी कलम को औजार बनाकर इन स्थितियों के विरुद्ध सक्रिय हस्तक्षेप करना चाहते हैं। वे मानते हैं कि साहित्यकार की चीख, उसका। दर्द साहित्य में छाए सन्नाटे को तोड़ सकता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2012 |
Pulisher |
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