Doosare Shabdon Mein

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Doosare Shabdon Mein

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Author: Nirmal Verma

Availability: 5 in stock

Pages: 240

Year: 2022

Binding: Hardbound

ISBN: 9789355185921

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

दूसरे शब्दों में

यह पुस्तक मेरे उन लेखों का संकलन है, जो मैंने पिछले तीन वर्षों के दौरान लिखे थे। इनमें कुछ ऐसे आलेख, वक्तव्य और टिप्पणियाँ भी शामिल हैं, जिन्हें समय के तात्कालिक दबावों और तकाजों के तहत लिखा गया था। इनमें कुछ ऐसे साक्षात्कारों को भी चुनकर सम्मिलित किया गया है, जिनमें दूसरे द्वारा पूछे गए प्रश्नों-तले मुझे दुबारा से अपनी मान्यताओं को पुनः परिभाषित करने का मौका मिला था। विषय लगभग वही हैं, जो मेरी पिछली पुस्तकों की चिंताओं के केंद्र में रहे हैं, लेकिन नई परिस्थितियों और संदर्भों में उनके कुछ ऐसे अप्रत्याशित पक्ष खुलते हैं, जिन पर ‘दूसरे शब्दों में’ पुनर्विचार करना जरूरी लगता है। वैसे भी निबंध लिखना-मेरे लिए-चिंताओं को सुलझाना उतना नहीं, जितना बदलते हुए परिप्रेक्ष्य में उनका नए सिरे से सामना करना है। जहाँ पहले पके हुए विश्वास थे, वहाँ अब संशय के काँटे दिखाई देने लगते हैं। हमारे युग में जिस तरह ईश्वर के सच्चे नामलेवा सिर्फ नास्तिक बचे रहे हैं, उसी तरह अपने भीतर उगने वाले पीड़ित संदेहों से सही मुठभेड़ वही लोग कर पाते हैं, जिनमें आस्था पाने की प्यास सबसे अधिक झुलसा देनेवाली होती है। निबंध विधा एक तरह का चक्रव्यूह है, जहाँ संदेह और आस्था हर अँधेरे कोने, हर अप्रत्याशित मोड़ पर एक-दूसरे के सामने क्षत-विक्षत, लहूलुहान खड़े दिखाई देते हैं। वहाँ यदि ‘सिनिसिज़्म’ के लिए जगह नहीं है, तो परम विश्वासों की गुंजाइश नहीं है। पुस्तक में संकलित करने से पूर्व जब इन लेखों को दुबारा से देखने का अवसर मिला, तो कुछ अजीब-सा अनुभव हुआ जैसे मैं किसी जानी-पहचानी पगडंडी पर चल रहा हूँ, जहाँ से इस शताब्दी के आरंभ में मेरे पूर्वज-पितामह गुजरे थे। मुझे लगता है जैसे किसी जादू के खेल से बीसवीं शती के अंत तक पहुँचते-पहुँचते हमारा देश वहीं पहुँच गया है, जहाँ से उसकी यात्रा शुरू हुई थी; अंतर इतना ही है-और वह बड़ा अंतर है-कि जहाँ पहले अपने को पाने का स्वप्न था, वहाँ आज सब-कुछ खो जाने की पीड़ा है।

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Binding

Hardbound

ISBN

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Publishing Year

2022

Pulisher

Language

Hindi

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