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Description
समय की शिला पर
एक समय था जिसमें एक रचना परिवेश बनाया था शमशेर बहादुर सिंह, राम विलास शर्मा, ठाकुर प्रसाद सिंह, नागार्जुन, नामवर सिंह, जगत शंखधर, नरेंद्र शर्मा, शिंवदान सिंह चौहान, चंद्रबली सिंह और विष्णु चंद्र शर्मा ने। विष्णुजी को यह संस्कार अनेक अर्थों में मिले थे अपने पिता कृष्ण चंद्र शर्मा और मां शिंवदेवी से। यह संस्मरण संग्रह इन्हीं विभूतियों की स्मृति को समर्पित है। विष्णु जी की यह विशेषता है कि वह कहीं भी भावुकता से काम नहीं लेते। उनके लिए मनुष्य का मनुष्य होना ही उसकी सबसे बड़ी पहचान है। जिन व्यक्तियों पर ये संस्मरण आधारित हैं, उनसे एक अभिन्न रिश्ता रहा है रचनाकार का।
कुछ से रहा है वैचारिक सहयात्री का गहरा संबंध तो कुछ के रचनाकर्म में वह कदम ब कदम साक्षी रहे हैं। कुछ को विकसित होते उन्होंने देखा है तो कुछ से प्रेरणा भी ली है। हां, एक चीज सबके साथ समान रही है कि कहीं कोई स्वार्थपरता किसी ओर से नहीं रही। यह बड़े लोगों का ऐसा जमावड़ा था जिसे अब किताबों के जरिए ही जाना जा सकता है। इनमें से अधिकांश अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके काम इतने स्थायी महत्व के हैं कि उन्हें भुला पाना मुमकिन नहीं है। जाहिर है, इसीलिए ये सब समय की शिला पर अपने गहरे रचनात्मक चिह्न छोड़ने में समर्थ भी हुए। इन संस्मरणों को पढ़ना दरअसल, एक विराट रचना समय से परिचित होना भी है जो नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरक धरोहर की तरह है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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