Vishnu Chandra Sharma

Vishnu Chandra Sharma

विष्णु चन्द्र शर्मा

उम्र के नवें दशक में भी लेखन में सक्रिय विष्णु चंद्र शर्मा नई पीढ़ी के लिए एक सतत प्रेरणा का स्रोत हैं। ‘कविं’ और ‘सर्वनाम’ सरीखी पत्रिकाओं के जरिए जहां उन्होंने एक विरल संपादकीय दृष्टि प्रदान की वहीं समय समय पर ऐसे प्रश्न भी खड़े किए जिनसे मुठभेड़ करना हर किसी के बूते की बात नहीं। एक तरफ वह कबीर, निराला, राहुल और त्रिलोचन के बाद मुक्तिबोध, नजरुल, नागार्जुन और शमशेर को सामने रखकर अपने साहित्य समय को नया आकार देते हैं तो दूसरी तरफ भरसक घुमक्कड़ी के दौरान पूरी दुनिया की यात्रा करते हुए नए-नए अनुभव बटोरते दिखाई देते हैं। इस दौरान उन्हें अपने वक्त की पतनशील सभ्यता से टकराना अच्छा लगता है। उनकी कहानियां, उपन्यास, नाटक, संस्मरण और कविताएं इस बात का प्रमाण हैं कि साहित्य की सरल घारा में बहने के बजाय बड़े रचनाकार अपनी धारा का निर्माण स्वयं करते हैं। पुरस्कारों और जोड़ तोड़ की राजनीति से दूर यह साहित्य साधक अपनी कुटी में जिस तरह आज भी नित नए अध्ययन और रचना प्रयोग करता नजर आता है, उसे देखकर लगता आता है, पुस्तक पकी आंखें और रचना का निरंतर उत्साह ही उनके रचनात्मक जीवन की प्रेरणा है।

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