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Samiksha Ka Loktantra
₹375.00 ₹320.00
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Author: Vigyan Bhushan
Pages: 160
Year: 2018
Binding: Hardbound
ISBN: 9789386604446
Language: Hindi
Publisher: Aman Prakashan
समीक्षा का लोकतंत्र
समकालीन रचनात्मकता की पहचान और मूल्यांकन में समीक्षा की निर्णायक भूमिका है, लेकिन हिन्दी में इस अनुशासन का ठीक-ठाक विकास नहीं हुआ। जो समीक्षाएं हिन्दी में होती हैं, वे अक्सर मेरी-तेरी या इसकी-उसकी सराहना या निंदा में कैद होकर तत्काल दम तोड़ देती हैं। इनका दीर्घकालीन उपयोग नहीं
के बराबर होता है। विज्ञान भूषण की यह समीक्षा केन्द्रित किताब ‘समीक्षा का लोकतंत्र’ अलग है। इसमें अभी-अभी वाली तात्कालिकता भी नहीं है और आग्रह और प्रयोजन के साथ किसी की निंदा-सराहना भी नहीं है। इसमें संकलित समीक्षाएं सहानुभूतिपूर्वक रचना को उसके पड़ोस से देखती-समझती हैं। खास बात यह है कि यहाँ रचना का निंदा या सराहना कि अतियों में सरलीकरण नहीं है। यहाँ समीक्षक रचना के सकारात्मक पहलुओं पर अपने को एकाग्र कर और उनको तसलल्ली और मनोयोग के साथ उजागर करता है। किताब में हमारी समकालीन रचनात्मकता के वैविध्य की बानगियाँ हैं। इसमें विष्णु प्रभाकर, मृदुला गर्ग, असगर वजाहत, चित्रा मुद्रल, मैत्रेयी पुष्पा, सूर्यबाला, काशीनाथ सिंह, नासिरा शर्मा, पल्लव, निशांत, प्रियदर्शन, जितेंद्र श्रीवास्तव, एकांत श्रीवास्तव, प्रेम कुमार और रुपेश कश्यप् के किताबों की समीक्षाओं के साथ मुक्तिबोध और स्वयं प्रकाश की रचनात्मकता पर स्वतंत्र आलेख भी हैं।
किताब की खास बात यह है कि इसमें पैट्रिक मोदियानो, सुन मी ह्वाग, रस्किन बांड और खुशवंत सिंह की किताबों के हिन्दी अनुवादों की भी समीक्षाएं हैं। आशा है कृति और कृतिकार को तत्काल समझने-परखने के लिए समीक्षा के अनुशासन के सही और संतुलित उपयोग के कारण यह किताब हिन्दी में अलग पहचान और जगह बनाएगी।
– प्रोफेसर माधव हाड़ा
(अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय)
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Binding | Hardbound |
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Language | Hindi |
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Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
विज्ञान भूषण
आरम्भ – मातृभूमि वाराणसी, शिक्षा-दीक्षा और आरम्भिक रोजी-रोजगार कानपुर में। कई शैक्षिक विधाओं और विश्वविद्यालयों से स्नातक, स्नातकोत्तर और व्यावसायिक स्तर की शिक्षा ग्रहण की। कुछ वर्ष अध्यापन भी किया।
मध्य – पठन-पाठन और लेखन में गहन रुचि के चलते निजी प्रतिष्ठान की लगी-लगाई नौकरी छोड़कर देश की राजधानी में वर्ष 2007 में आगमन। स्वतंत्र पत्रकार के रूप में अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में तमाम विधाओं में भरपूर लेखन। किताबघर प्रकाशन से भी कुछ समय सम्बद्ध रहे। इस दौरान कई प्रसिद्ध साहित्यकारों के सान्निध्य में साहित्यिक लेखन में सक्रियता बढ़ी। अब तक हिन्दी में 7 और अंग्रेजी में 1 सम्पादित पुस्तकें प्रकाशि। कुकुरमुत्तों का शहर (कविता-संग्रह)।
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