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उदयशंकर भट्ट
उदयशंकर भट्ट का जन्म 1898 ई० में इटावा में अपने ननिहाल में हुआ। उनके पिता पं० मेहता फतेहशंकर भट्ट अंग्रेज़ी और संस्कृत के विद्वान थे अतः भट्ट जी की शिक्षा-दीक्षा वेदमंत्रों के अध्ययन के साथ हुई। भट्ट जी की बचपन से ही कवि बनने की अदम्य आकुलता ‘मेरी पहली कविता’ के नाम से कलकत्ता के साहित्यांक ‘नया समाज’ में व्यक्त हुई है। 1917 ई० में उनका एक लेख ‘सांख्यदर्शन के कर्ता’, ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपा। फिर ‘मर्यादा’, ‘प्रताप’ ‘श्रीशारदा’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें निकलना शुरू हुई। 1921-22 ई० में लाहौर में अध्यापन कार्य के साथ उनका अधिकतर साहित्य रचा गया- विशेषकर नाटक-लेखन की ओर प्रवृत्ति वहीं विकसित हुई। स्वभाव से तेज भट्ट जी राजनीति में भी सक्रिय रहे।
छायावाद की स्वछन्द धारा के रचनाकार उदयशंकर भट्ट के साहित्य में मनुष्यत्व के प्रति आस्था है। 1920-66 ई० तक उनके काव्य में छायावाद और छायावादोत्तर काल का बदलता हुआ परिदृश्य मिलता है। मूलतः कवि, नाटककार भट्ट जी के नाटक राष्ट्रीय-सांस्कृतिक धारा से जुड़े हैं। हिन्दी के वह प्रथम गीति नाटककार और प्रथम दुखान्त नाटककार हैं। उनके गीतिनाटय ‘मत्स्यगंधा’ ने उनके मौलिकता को स्थापित किया। ‘गुरु द्रोण का अन्तनिरीक्षण’ और ‘अश्वत्थामा’ में चरित्र और नाट्यशिल्प का सामंजस्य मिलता है।
उदयशंकर भट्ट के रेडियो नाटक और एकांकी सामाजिक चेतना और प्रयोगों को सामने लाते हैं। उनके उपन्यासों में ‘सागर, लहरें और मनुष्य’ (1955 ई०) ने आंचलिकता के संदर्भ में उन्हें ख्याति दिलाई। उनके निबन्धों में साहित्य और अतीत, वर्तमान, भविष्य की चिंतायें व्यक्त हुई हैं। उदयशंकर भट्ट का निधन 1966 ई० में हुआ।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 1998 |
Pulisher |
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