Uttar Udarikaran Ke Aandolan

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Uttar Udarikaran Ke Aandolan

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Author: Aaku Srivastava

Availability: 5 in stock

Pages: 384

Year: 2024

Binding: Paperback

ISBN: 9789355182388

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

उत्तर उदारीकरण के आन्दोलन

आन्दोलनों के राजनीतिक स्वरूप और उसके सामाजिक प्रभावों को बारीकी से समझने के लिए एक खास नज़रिये की आवश्यकता होती है। विशेषकर जब वैश्विक स्तर पर भी कई बार आन्दोलन फ़ैशनेबल होते जा रहे हैं। देश के लब्धप्रतिष्ठित और अनुभवी पत्रकार अकु श्रीवास्तव, जिनकी पैनी नज़र और व्यापक दृष्टिकोण ने हिन्दी पत्रकारिता को नये आयाम दिये हैं, उनसे उनकी पुस्तक उत्तर-उदारीकरण के आन्दोलन के माध्यम से आन्दोलनों के ऐतिहासिक परिवेश और उनके सामाजिक प्रतिफल को समझने का मौका मिलता है। नब्बे के दशक के आर्थिक उदारीकरण ने देश की दिशा और दशा हमेशा के लिए बदल दी। इसे समझना अपने आप में एक रोचक और शोध का विषय है। लेखक इस बात की ओर इशारा करते हैं कि उदारवाद और भूमण्डलीकरण के तीस साल बाद विकास और नित नये उभरते असन्तोष की समीक्षा है ज़रूरी है। वो जिन आन्दोलनों का उल्लेख करते हैं वे वैश्विक और स्थानीय दोनों हैं, मसलन-अमेरिका का ‘ब्लैक लाइफ़ मैटर्स’ से लेकर हांगकांग में चीन के वर्चस्व के खिलाफ़ लड़ाई और भारत में शाहीन बाग़ जैसे आन्दोलन। वे इन सारे प्रकरणों में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और ‘नेशन वांट्स टु नो’ जैसे मनोरंजक जुमलों के साथ-साथ न्यूज़ की गम्भीरता में होने वाले ह्रास की ओर भी गम्भीरतापूर्वक ध्यान आकर्षित करते हैं। कुल मिलाकर यह पुस्तक एक सहज और रोचक लहजे में एक गम्भीर शोधनीय विषय की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है।

प्रोफ़ेसर मिहिर भोले प्रिंसिपल फैकल्टी, इंटरडिसिप्लिनरी डिज़ाइन स्टडीज़, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन, अहमदाबाद निर्वासन से स्थापन की कँटीली राह से गुज़रते हुए कोई देश किस तरह अपनी जड़ों से उखाड़ कर फेंक दिया जाता है इसकी पीड़ा सदियों से मनुष्य जाति झेल रही है। समाज जब सामूहिक पीड़ा का शिकार होता है तो उसी को अपनी आवाज़ में बदल देता है। ये बुलन्द आवाज़े न सिर्फ़ हमारी पीढ़ियों को बल्कि सरकारों को भी झकझोरती हैं। हम उदारवाद और भूमण्डलीकरण के समय में जी रहे हैं और हमारी आने वाली नस्लें वैचारिक तौर पर परिपक्व हैं। वे विचार केन्द्रित तो हैं ही, साथ ही अपने अधिकारों को जन-आन्दोलनों के परिप्रेक्ष्य में समझने बरतने और उन पर स्पष्टीकरण के लिए व्यावहारिक रूप से ज़रूरी चर्चा भी करती हैं। उत्तर- उदारीकरण के आन्दोलन पुस्तक उसी सामूहिकता पर सशक्त विचार व्यक्त करती है जिसे एक जागरूक पीढ़ी ने संचालित किया। इस दायित्व बोध का निर्वाह करते हुए देश की जागरूक पीढ़ी ने अपने समय की समस्याओं और पीड़ाओं को समझा और इंगित भी किया। यह पुस्तक उन सभी बिन्दुओं पर क्रमवार केन्द्रित है जिनके कारण हमारा समाज और मनुष्यता तनाव में रही। इन आन्दोलनों को केवल सामाजिक बदलावों के परिप्रेक्ष्य में नहीं देखना चाहिए बल्कि धर्म, क़ानून और राजनीति की कसौटी पर इनके प्रत्येक तन्तुओं की पड़ताल करके ही इन आन्दोलनों के उजले और मलिन पक्षों को समझा जा सकता है। सनद रहे, ये आन्दोलन केवल न्याय के लिए की गयी लड़ाई नहीं थी बल्कि मनुष्यता बचाये रखने के लिए एक सामूहिक चेतना की पुकार थी और इन्हें उसी गहराई और मार्मिकता से समझा जाना आवश्यक है।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2024

Pulisher

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