Acharya Brihaspati

Acharya Brihaspati

आचार्य बृहस्पति

उत्तर प्रदेश को एक भूतपूर्व देशी रियासत रामपुर के प्रतिष्ठित राजपण्डित-कुल में जन्म। पुरातन और आधुनिक प्रशिक्षण-पद्धति के समन्वित रूप में बहुमुखी व्यक्तित्व का निर्माण ।

1950 से 1965 ई. तक कानपुर के विक्रमजीत सिंह सनातनधर्म कालेज में धर्माचार्य एवं हिन्दी- साहित्य के प्राध्यापक रहे। तत्पश्चात्‌ अखिल भारतीय आकाशवाणी में चीफ एडवाइजर।

1975 से सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय में ‘एडवाइजर’ रहे।

‘भरत का संगीत सिद्धान्त’, ‘संगीत चिन्तामणि’, ‘ध्रुवपद और उसका विकास’, ‘मुसलमान और भारतीय संगीत’, ‘खुसरो’, ‘तानसेन तथा अन्य कलाकार’ जैसी अपनी रचनाओं से देश-विदेश में ख्यात।’  ‘नाट्य शास्त्र’ के अट्ठाईसवें अध्याय पर ‘सज्जीवनम्‌’ नामक संस्कृत भाष्य एवं ‘साधना’ नामक हिन्दी टीका का प्रणयन।

अखिल भारतीय गान्धर्व महाविद्यालय मण्डल से ‘संगीत महोपाध्याय’ तथा द्वारकापीठ के शंकराचार्य जी द्वारा अपने सर्वतोमुखी पाण्डित्य के कारण ‘विद्यामार्तण्ड’ उपाधि से अलंकृत। महामहिम राष्ट्रपति द्वारा संगीत नाटक अकोदमी के ‘रत्नसदस्य’ के रूप में सम्मानित।

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