Narendra Mohan

Narendra Mohan

नरेन्द्र मोहन

डॉ. नरेन्द्र मोहन कवि, नाटककार और आलोचक के रूप में सुविख्यात नरेन्द्र मोहन का जन्म 30 जुलाई, 1935 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुआ। अपनी कविताओं (कविता-संग्रह) इस हादसे में (1975), सामना होने पर (1979), एक अग्निकांड जगहें बदलता (1983), हथेली पर अंगारे की तरह (1990), संकट दृश्य का नहीं (1993), एक सुलगती ख़ामोशी (1997), एक खिड़की खुली है अभी (2005), नीले घोड़े का सवार (2008), रंग आकाश में शब्द (2012) द्वारा वे नए अंदाज़ में कविता की परिकल्पना करते रहे हैं तथा नई संवेदना और प्रश्नाकुलता को विकसित करने में उनकी खास भूमिका रही है। अपने नाटकों : कहै कबीर सुनो भाई साधो (1988), सींगधारी (1988), कलंदर (1991), नौ मैंस लैंड (1994), अभंगगाथा (2000), मि० जिन्ना (2005), हद हो गई, यारो (2005), मंच अंधेरे में (2010) में वे हर बार नई वस्तु और दृष्टि को तलाश करते दिखते है। नई रंगत में ढली उनकी डायरी साथ-साथ मेरा साया ने इस विधा को नए मायने दिए हैं। इसी क्रम से आई हैं – साये से डायरी (2010) और फ्रेम से बाहर आती तस्वीरें (संस्मरण 2010)।

नरेन्द्र मोहन ने अपनी आलोचना पुस्तकों और संपादन-कार्यों द्वारा जो विमर्श खड़े किए है, उनके द्वारा सृजन और चिंतन के नए आधारों की खोज संभव हुई है। लंबी कविता का विमर्श उन्हीं की देन है। विभाजन : भारतीय भाषाओं की कहानियां खंड एक व दो और मंटो की कहानियां उनकी संपादन प्रतिभा के परिचायक हैं। आठ खंडों में नरेंद्र मोहन रचनावली प्रकाशित हो चुकी है। उनके नाटक और कविताएं विभिन्न भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में भी अनुदित हो चुकी हैं। वे कई राष्ट्रीय और प्रादेशिक पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकार हैं।

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