Purnakanta Buragohain

Purnakanta Buragohain

चाओ पूर्णकान्त बुढ़ागोहाईं (1890-1959) का असमिया भाषा का क्लासिकी यात्रा-वृत्त ‘पातकाई सीपारे न बछर’ का हिन्दी अनुवाद ‘पातकाई पर्वतमाला के पार…’, उस काल खण्ड (1933-1942) में बर्मा देश (म्यान्मार), दक्षिण चीन का युन्नान प्रदेश और श्यामदेश (थाईलैण्ड) में साहसिक भ्रमण, ऐतिहासिक अनुसंधान और व्यापारिक प्रयोग की अद्भुत पुस्तक है। यह कृति पाठकों को तत्कालीन सूक्ष्म विवरणों के अतिरिक्त इतिहास के पन्नों में हज़ारों वर्ष पीछे तक ले जाएगी।

यह भ्रमण मोटरगाड़ी, रेलगाड़ी या पानी के जहाज से, ऊँचे-नीचे पहाड़ों, घाटियों, बीहड़ जंगलों, नदी-नालों, छोटे-बड़े कस्बों, नगरों से या गाँव खेत-खलिहानों से गुज़रता जाता है। पुस्तक में बर्मा की प्राकृतिक सम्पदा, धर्म, संस्कृति, बौद्ध मंदिरों, आचार-व्यवहार, नृत्य-संगीत, व्यापार-कारोबार के प्रामाणिक विवरण मिल जाएँगे।

बर्मा में, असम से बंदी बनाकर लाए गए लोगों की बस्तियों की खोज और असम के ‘अहोम’ लोगों के मूल-स्थान-संधान में दक्षिण चीन के यून्नान प्रदेश की कठिन यात्रा, पुस्तक को एक ऐतिहासिक दस्तावेज बना देती है।

अंतिम अध्याय ‘महापलायन का रोजनामचा’ में 1942 में पहाड़ों और जंगलों के रास्ते लेखक के बर्मा से भाग निकलने, और 65 दिनों की दौड़-भाग के बाद, मणिपुर से होते हुए अपने घर तक पहुँचने का साहसिक, रोमांचक और लोमहर्षक अनुभव संचित है।

इस मूल असमिया पुस्तक का प्रकाशन लेखक की मृत्यु के पैंतीस वर्ष बाद 1993 में और इसका अंग्रेजी अनुवाद 2016 में प्रकाशित हुआ था।

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