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Description
आधी दुनिया का सच
औरत के पक्ष में हमारे देश में अब तक चाहे कितने ही कानून क्यों न बन गए हों, आम औरत आज भी पुरुष की दासता से मुक्त नहीं हुई है। जन्म के बाद ही नहीं, जन्म से पूर्व भी कन्याभ्रूण के प्रति हमारे समाज की पुरुष मानसिकता जग जाहिर है। ऐसे में ‘आधी दुनिया का सच’ को लेखिका ने अपनी तरह से सामने रखा है।
यहां लेखिका महिलाओं को न सिर्फ हिंसा की वेदी पर देखती है बल्कि घर से बाहर उसे दरपेश संघर्ष को भी रेखांकित करती हैं। यहां अकेली स्त्री के अनेक संघर्षों पर तो उसकी नजर टिकी ही हैं, समाज के विभिन्न तबकों की स्त्री की वस्तुस्थिति पर भी विचार किया गया है। समाज ही नहीं, लेखिका ने यहां व्यवस्था को खूब आड़े हाथों लिया है।
गूढ़-गंभीर किताबों की भीड़ के बीच यह पुस्तक स्त्री की समस्या और स्थिति को आत्मीय ढंग से समझने की कोशिश करती है।
अनुक्रम
भूमिका
हिंसा की वेदी पर महिलाएं
कन्याएं : जो जन्म नहीं ले पातीं
पत्रकारिता में महिलाओं की छवि
सौंदर्य के बाजार में मुक्ति का सपना
बहुपत्नी प्रथा : स्त्री की अस्मिता पर प्रहार
तलाक : सुलझन या उलझन ?
कामकाजी महिलाओं का बहुआयामी संघर्ष
अकेली स्त्री और मकान
नारी-शिक्षा की चुनौतियां
पहरे में हैं ग्रामीण स्त्रियां
पंचायती राज अधिनियम और महिलाएं
महिला-आरक्षण के सवाल पर संसद में उबाल
पुलिस, कानून और महिला-संगठन
कानून में ‘स्त्री-अधिकार’
अंतरराष्ट्रीय महिला-दिवस : संघर्ष और विजय का प्रतीक
स्त्री-प्रगति का परिदृश्य
स्त्री-सशक्तीकरण की दिशा
स्त्री-शक्ति के लिए सरकारी चिंता
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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