Aalochana Ka Sankat

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Aalochana Ka Sankat

Aalochana Ka Sankat

450.00 350.00

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450.00 350.00

Author: Madhuresh

Availability: 5 in stock

Pages: 200

Year: 2018

Binding: Hardbound

ISBN: 9789387187306

Language: Hindi

Publisher: Nayeekitab Prakashan

Description

आलोचक का आकाश

आलोचना में बहुत स्वेच्छाचारी ढंग से, अपने हिसाब से नामों को लेने और छोड़ने की छूट नहीं होती। स्तर और प्रवृत्तियों के नाम पर किसी और कैसे भी चयन की छूट वहां एक सीमा तक ही मिल सकती है। जो लेखक अपनी अबाध निरंतरता और सक्रियता के साथ अपनी उपस्थिति बनाए रहा है उसे क्या आप इसलिए नकार देंगे कि वैचारिक दृष्टि से वह आपसे उग्र मतभेद रखता है ? जिसे सचमुच आलोचना का लोकतंत्र कहा जा सकता है, उस वैचारिक खुलेपन का सबसे बड़ा और खुला मंच हिंदी की मार्क्सवादी आलोचना रही है – अपनी सारी सीमाओं के बीच। उसका अधिकतर विकास इन बहसों और विवादों के माध्यम से ही हुआ। जब–तब विवादों की अकारण उग्रता ने उसे भारी क्षति भी पहुंचाई लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि उसमें उस तरह कथित रूप से विरोधियों के नामोल्लेख से बचने का कोई प्रयास हुआ हो। अपने समय की अच्छी उल्लेखनीय और संभावनाशील रचना का आप मूल्यांकन नहीं करेंगे, आलोचना में परिप्रेक्ष्यगत समग्रता की चिंता यदि आपकी चिंता नहीं होगी तो फिर आपकी उस आलोचना की विश्वसनीयता क्या होगी ? विश्वसनीयता से ही आलोचना की साख बनती है। इस विश्वसनीयता के अभाव में बड़े से बड़ा आलोचक और उसकी आलोचना निष्प्रभ और निष्प्रभावी हो जाती है। विश्वसनीयता के क्षरण की यह ढलान सीधे अवसरवाद की ओर जाती है।

आलोचना को आभा और गमक नीति से मिलती है, रणनीति से नहीं। अच्छा और बुरा, सच और झूठ, लोक और सत्ता के द्वंद्व में आलोचना का अपना पक्ष चुनना ही होगा। जब आपने इस मूल दायित्व और कार्यभार को छोड़कर आलोचना दूसरे धंधों में फंस जाती है, वह अपनी एक खास चमक और गमक खो बैठती है। जब वह गुट–निर्माण, विश्वविद्यालयी सेमिनारों और विदेश यात्राओं के जुगाड़ में सिमट जाती है, वह संकट के बीच होती है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2018

Pulisher

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