Kale Daur Mein Ek Chaitawani Ki Tarha
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Description
काले दौर में एक चेतावनी की तरह
इतिहास में तथ्यों और आँकड़ों का विशेष महत्त्व होने पर भी वह केवल उन्हीं से नहीं बनता है। अपने वर्तमान और भविष्य को बनाने-सँवारने के लिए भी हम इतिहास की ओर जाते हैं। मानव-विकास के क्रम में आये लोकवृत्त, चरित-नायक, तिजंधरी-कथाएँ आदि सब व्यापक अर्थ में इतिहास का ही हिस्सा हैं। अपने समय को परिभाषित करने की प्रक्रिया में इतिहासकार ही नहीं जब-तब साहित्यकार भी इतिहास की ओर जाते हैं और अपने समय की जरूरतों के हिसाब से ऐसे चरित-नायकों एवं घटना-प्रसंगों की अवतारणा करते हैं कि एक नयी चमक-दमक के साथ वे हमारे सामने आ खड़े होते हैं। अपने युग से निकलकर जब वे हमारे समय तक आते हैं तो इस लम्बी यात्रा के चिह्नों से बच नहीं पाते। लेकिन उनमें घटित सारा युगीन परिवर्तन भी उनकी पूर्व स्थापित छवि को पूरी तरह निरस्त नहीं कर पाता। प्रायः ही लेखक ऐसे पात्रों और चरित-नायकों की ओर इस उद्देश्य से भी जाते हैं कि अपने समय में जो न्याय उन्हें नहीं मिला उसके लिए अब रचनात्मक संघर्ष किया जाये। प्रायः अपने समय की राजनीतिक-सांस्कृतिक आवश्यकताएँ भी उन्हें इसके लिए प्रेरित करती हैं। यहाँ इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दशक में प्रकाशित पाँच ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले उपन्यासों को एक साथ रखकर एक ओर यदि दो हजार वर्षों से भी अधिक की काल-यात्रा में बदलते समाज की छवियाँ और परतें खुलती हैं वहीं युगीन परिवेश में इन चरितनायकों का संघर्ष भी स्पष्ट होता है। हमारे अपने समय के वैचारिक आन्दोलन और प्रभाव भी इसमें अपनी जगह बनाते हैं। इससे शायद उन कारणों को भी समझने और रेखांकित करने की सुविधा हो कि एक समय में पर्याप्त लोकप्रिय होने पर भी ऐतिहासिक कहानी क्यों एक विलुप्त कला-रूप बनकर रह गयी जबकि सारी कठिनाई और दुर्लभता के बावजूद ऐतिहासिक उपन्यास इससे बचा रहा है।
– इसी पुस्तक से
Additional information
ISBN | |
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Authors | |
Binding | Hardbound |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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