Agnivyuh

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Agnivyuh

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250.00 215.00

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Author: Shriram Dubey

Availability: 5 in stock

Pages: 207

Year: 2006

Binding: Hardbound

ISBN: 812671218x

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

अग्निव्यूह

‘जंगल’ जब तक ‘जंगलों’ में थे, तब तक जंगल के नियम, उसका बाहुबल, कमजोरों पर बाहुबलियों के शोषण जंगलों तक ही सीमित थे। आज जंगलों का फैलाव शहरों-गाँवों तक आ पहुँचा है। जंगलों के साथ शहरों-गाँवों तक में जंगली जानवरों के पैरों के निशान दिखाई देने लगे। आदमी भी इनके संग-साथ में तन की ताकत एवं मन के विचार के स्तर पर धीरे-धीरे जानवर होने लगा।

सोच-विचार एवं विवेक के स्तर पर जिसने जंगल को परास्त कर दिया, वह आदमी रह गया पर जो स्वयं परास्त होकर जंगल के सामने नतमस्तक हो गया, जिसने अपने भीतर जंगल को बसा लिया, वह जंगली जानवरों से भी ज्यादा भयावह हो गया। उसके पंजे करामात दिखाने लगे। बाहुबल शोषण का स्त्रोत बन गया, माफिया-संस्कृति सर उठाकर चलने लगी और शीघ्रातिशीघ्र ‘कुबेर’ बनने की ललक ने बिना पूँजी-पगहा वाला ‘अपहरण-उद्योग’ खड़ा कर दिया। जंगली चक्की चलने लगी, लोग पिसने लगे।

शोषण बढ़ा तो इसकी प्रतिक्रिया पहले कुनमुनाई, फिर अँगड़ाई लेने लगी। पाँवों तले दबी दूब भी पाँव हटने के बाद सर तो उठाती ही है। उठने लगे विरोधी स्वर…धीरे-धीरे उग्र होने लगे ये स्वर। फैलने एवं पकने लगीं उग्रवाद की फसलें।

बाहुबल, माफिया-संस्कृति, अपहरण-उद्योग और उग्रवाद के खाद-पानी के लिए कोयलांचल और उसके चारो ओर दूर-दूर तक फैली जंगल-पहाड़ों वाली जमीन बड़ी मुफीद बन गई।

कहते हैं कोयलांचल में नोट हवा में उड़ते हैं। जिसके हाथों में ताकत हो वह आगे बढ़कर लूट ले। लूट की जंगली प्रतिस्पर्धा बढ़ी तो बाहुबल का प्रदर्शन बढ़ा। लोग दूसरों की लाशें गिराकर उन्हें रौंदते हुए ‘नोट’ तक बढ़ने लगे। खूनी-खेल गुल्ली-डंडा बन गया, उग्रवाद एवं अपहरण भी साथ-साथ कदमताल करने लगे, इन सबके बीच पिसने लगा आम आदमी और लाल होने लगी काली जमीन।

लाल पड़ती जा रही धरती की परत-दर-परत खोलकर इसे देखने, समझने और दिखाने का प्रयास है यह उपन्यास।

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Authors

Binding

Hardbound

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Publishing Year

2006

Pulisher

Language

Hindi

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