Akhand Aaryavert
Akhand Aaryavert
₹150.00 ₹130.00
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Author: Tejpal Singh Dhama
Pages: 144
Year: 2007
Binding: Paperback
ISBN: 8188388556
Language: Hindi
Publisher: Hindi Sahitya Sadan
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Description
भूमिका
नत्वेवार्यस्य दासभावः अर्थात् आर्य जाति को कभी पराधीन नहीं किया जा सकता, का उद्घोष करने वाले विष्णु गुप्त को भला कौन नहीं जानता ? चणक वंश में जन्म लेने के कारण उन्हें चाणक्य कहा गया। साथ ही साथ उनके वंश में कुटल वृत्ति होने के कारण उन्हें कौटल्य भी कहा गया। जो ब्राह्मण वर्ष भर के लिए अनाज भर कर संचित रखते हैं, उन्हें कुटल अथवा कुम्भीधान्य (अवधि में कोठिल) कहा जाता है। कुटल वृत्ति त्याग व तपस्या का प्रतीक है और आच्छादन अर्थात् संस्कारों का कवच भी होने से इनकार नहीं किया जा सकता। कौटल्य को कौटिल्य उन लोगों ने लिखना शुरू किया, जिन्होंने चाणक्य व उनके अर्थशास्त्र की दुन्दुभी बजाई थी। उसी नाम को दुर्भाग्यवश परवर्तीकाल के ग्रंथ निर्माता अपनाते चले गये। चाणक्य प्राचीन वैदिक धर्म का अनुयायी था, इसलिए उन्होंने कुछ तत्कालीन नवीन मत-मतान्तरों का खण्डन किया, जिस कारण वे कुछ विशेष संप्रदाय के लोगों की आँखों की किरकिरी बन गये। ढाई गज की धोती धारण करनेवाले उस ब्राह्मण की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उसने जो भी किया, वह सब राष्ट्र कल्याण के लिए किया। अपने स्वार्थ साधन के लिए कुछ भी नहीं किया। कौटल्य की सुदक्षता के कारण ही सम्राट चन्द्रगुप्त ने अत्यल्प काल में ही सिकन्दर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस को परास्त किया। पराजित सेल्यूकस को काबुल, किरात, कांधार, बलूचिस्तान देने के साथ-साथ अपनी पुत्री हेलना का विवाह भी चन्द्रगुप्त के साथ करना पड़ा। इस प्रकार चन्द्रगुप्त संपूर्ण जम्बूद्वीप अर्थात् अखण्ड भारत का एक छत्र शासक बन गया। अखण्ड भारत का निर्माण कौटल्य की ही नीति का परिणाम था और जब उसने देखा कि अखण्ड भारत चारों ओर से सुरक्षित है, वे आचार्य संन्यासी बन वन में चले गये।
कितना उच्चादर्श था हिमालय से समुद्र पर्यन्त् ! सहस्र यौजन विस्तीर्ण विशाल आर्यभूमि को एक सूत्र में संगठित करनेवाले, वात्स्यायन बन भारत की शास्त्र शक्ति और चाणक्य बन शस्त्र बल का पुनरुद्धार करनेवाले उस महान आचार्य कौटल्य का।
हारे हुए देश को संगठन सूत्र में पिरोकर उन्नति की चोटी पर पहुँचानेवाले सच्चे अर्थों में चाणक्य भारत के प्रथम राष्ट्रपिता कहने के अधिकारी हैं। उनका महान ग्रंथ अर्थशास्त्र आज भी नीति निर्माताओं, नेतृत्वकर्ताओं और जन सामान्य के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करता है।
उस महान आचार्य के विषय में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, स्वयं इस पुस्तक के लेखक ने शांति मठ के नाम से एक उपन्यास में गौरवशाली परिचय 15-16 वर्ष की आयु में ही लिखकर प्रकाशित कराया था। फिर भी आज के युग में उन पर पुनः लिखा जाना और ज्यादा प्रासंगिक हो गया है।
आजकल राष्ट्र के कर्णधार या भारतीय सांसद जिस प्रकार संसद में सवाल पूछने के लिए भी घूस लेने व रुपयों या वोट के लालच में देश की अस्मिता को दाँव पर रखने का दुष्कर्म करने लगे हैं, ऐसे समय में किसी भी राष्ट्रभक्त भारतीय को चाणक्य का ध्यान आना स्वाभाविक ही है कि काश ! आज भी कोई कौटल्य होता ! जो अपने पुरुषार्थ से आज के पर्वतेश्वर या धनानंद अर्थात् देश के दुष्ट कर्णधारों का या तो सर्वनाश कर देता या फिर उन्हें राक्षस की तरह सही मार्ग पर चला कर भारत का खोया हुआ गौरव पुनः स्थापित कर देता।
मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि इस ग्रंथ में परकाया प्रवेश का उद्धरण जहाँ चाणक्य से संबद्ध प्राचीन ग्रंथों यथा मुद्राराक्षस, वंश चरितावली आदि से लिया गया है, वहीं सिकन्दर का सैन्य अभियान, उसकी भारत में पराजय, विभिन्न राजाओं के सैन्य तथा आदि इतिहास की पुस्तकों के आधार पर लिखे गये हैं, फिर भी यह मात्र उपन्यास ही है।
कहते हैं कि इतिहास अपने आपको को दोहराता है, लेकिन भारतीय होने के नाते पराधीनता का इतिहास तो हम नहीं दोहराना चाहते, परन्तु स्वतंत्रता की रक्षा के लिए चाणक्य जैसे आचार्यों का पुनर्जन्म हो यह हम अवश्य चाहते हैं। और साथ ही साथ यह भी चाहते हैं कि भारत की भावी पीढ़ी देश के इतिहास से शिक्षा लेकर या प्रेरणा प्राप्त कर राष्ट्र की परम् उन्नति के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहे। इसी आशा और विश्वास के साथ मैं यह उपन्यास आपके हाथों में सौंप रहा हूँ।
खेकड़ा (बागपत) अलमतिविस्तरेण बुद्धिमद्वरर्येषु
26 जनवरी 2006
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2007 |
Pulisher |
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