Anamdas Ka Potha

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Anamdas Ka Potha

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Author: Hazari Prasad Dwivedi

Availability: 5 in stock

Pages: 175

Year: 2024

Binding: Paperback

ISBN: 9788126707652

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

अनामदास का पोथा

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी उन विरल रचनाकारों में थे, जिनकी कृतियाँ उनके जीवन-काल में ही क्लासिक बन गईं। अपनी जन्मजात प्रतिभा के साथ उन्होंने शास्त्रों का अनुशीलन और जीवन को सम्पूर्ण भाव से जीने की साधना करके वह पारदर्शी दृष्टि प्राप्त की, जो किसी कथा को आर्ष-वाणी की प्रतिष्ठा देने में समर्थ होती है। अनामदास का पोथा अथ रैक्व-आख्यान आचार्य द्विवेदी की आर्ष-वाणी का अपूर्व उद्घोष है। संसार के दुख-दैन्य ने राजपुत्र गौतम को गृहत्यागी, विरक्त बनाया था, लेकिन तापस कुमार रैक्व को यही दुख-दैन्य विरक्ति से संसक्ति की ओर प्रवृत्त करते हैं। समाधि उनसे सध नहीं पाती, और वे उद्विग्न की भाँति उठकर कहते हैं : ‘‘माँ, आज समाधि नहीं लग पा रही है। आँखों के सामने केवल भूखे-नंगे बच्चे और कातर दृष्टिवाली माताएँ दिख रही हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, माँ ?’’ और माँ रैक्व को बताती हैं : ‘‘अकेले में आत्माराम या प्राणाराम होना भी एक प्रकार का स्वार्थ ही है।’’

यही वह वाक्य है जो रैक्व की जीवन-धारा बदल देता है और वे समाधि छोड़कर कूद पड़ते हैं जीवन-संग्राम में। अनामदास का पोथा अथ रैक्व-आख्यान जिजीविषा की कहानी है।

‘‘जिजीविषा है तो जीवन रहेगा, जीवन रहेगा तो अनन्त संभावनाएँ भी रहेंगी। वे जो बच्चे हैं, किसी की टाँग सूख गई है, किसी का पेट फूल गया है, किसी की आँख सूज गई है – ये जी जाएँ तो इनमें बड़े-बड़े ज्ञानी और उद्यमी बनने की संभावना है।’’

तापस कुमार रैक्व उन्हीं संभावनाओं को उजागर करने के लिए व्याकुल हैं, और उसके लिए वे विरक्ति का नहीं, प्रवृत्ति का मार्ग अपनाते हैं।

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Paperback

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Publishing Year

2024

Pulisher

Language

Hindi

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