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Description
बाँ
गाँधी को लेकर एक बड़ा और चर्चित उपन्यास लिख चुके गिरिराज जी इस उपन्यास में कस्तूरबा गाँधी को लेकर आए हैं। गाँधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं अपने और साथ ही देश की आजादी के आन्दोलन से जुदा दोहरा संघर्ष। ऐसे दस्तावेज बहुत कम हैं जिनमे कस्तूरबा के निजी जीवन या उनकी व्यक्ति-रूप में पहचान को रेखांकित किया जा सका हो। नहीं के बराबर। इसीलिए उपन्यासकार को भी इस रचना के लिए कई स्तरों पर शोध करना पड़ा। जो किताबें उपलब्ध थीं, उनको पढ़ा, जिन जगहों से बा का सम्बन्ध था उनकी भीतरी और बाहरी यात्रा की और उन लोगों से भी मेले जिनके पास बा से सम्बंधित कोई भी सूचना मिल सकती थी। इतनी मशक्कत के बाद आकार पा सका यह उपन्यास अपने उद्देश्य में इतनी सम्पूर्णता के साथ सफल हुआ है, यह सुखद है।
इस उपन्यास से गुजरने के बाद हम उस स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में चीन्ह सकेंगे जो बापू के बापू बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में हमेशा एक खामोश ईंट की तरह नींव में बनी रही और उस व्यक्तित्व को भी जिसने घर और देश की जिम्मेदारियों को एक धुरी पर साधा। उन्नीसवीं सदी के भारत में एक कम उम्र लड़की का पत्नी रूप में होना और फिर धीरे-धीरे पत्नी होना सीखना, उस पद के साथ जुडी उसकी इच्छाएं, कामनाएं और फिर इतिहास के एक बड़े चक्र के फलस्वरूप एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी के रूप में खुद को पाना जिसकी ऊंचाई उनके समकालीनों के लिए भी एक पहेली थी। यह यात्रा लगता है कई लोगों के हिस्से की थी जिसने बा ने अकेले पूरा किया।
यह उपन्यास इस यात्रा के हर पड़ाव को इतिहास की तरह रेखांकित भी करता है और कथा की तरह हमारी स्मृति का हिस्सा भी बनाता है। इस उपन्यास में हम खुद बापू के भी एक भिन्न रूप से परिचित होते हैं। उनका पति और पिता का रूप घर के भीतर वह व्यक्ति कैसा रहा होगा, जिसे इतिहास ने पहले देश और फिर पूरे विश्व का मार्गदर्शक बनते देखा, उपन्यास के कथा-फ्रेम में यह महसूस करना भी एक अनुभव है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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