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Description
अस्ताचल की ओर – भाग 2
द्वितीय खण्ड
प्रथम परिच्छेद
हिमालय की सुरम्य घाटी में मार्तण्ड नामक बस्ती में मार्तण्ड भवन के कुछ अन्तर पर नदी के किनारे एक पक्की कुटिया है। कुटिया के बाहर चबूतरे पर मृगचर्म पर पालथी मारे पण्डित शिवकुमार विराजमान थे। सूर्योदय का समय था, पण्डित शिवकुमार सूर्याभिमुख ध्यानस्थ बैठे थे और उदीयमान सूर्य की किरणें उनकी मुख छवि को द्योतित कर रही थीं।
निश्चित अवधि में पण्डितजी की साधना सम्पूर्ण हुई और उन्होंने नेत्रों को उन्मीलित कर देखा तो पाया कि सूर्य उदित होकर ऊपर की ओर बढ़ रहा है। इससे उनको सन्तोष हुआ। पण्डितजी ने उदीयमान सूर्यदेव को प्रणाम किया और फिर आसन से उठकर महर्षि मार्तण्ड के आश्रम की ओर अभिमुख होकर नमस्कार किया।
तदनन्तर वहीं पर खड़े-खड़े उन्होंने पुकारा, ‘‘देवी !’’
कुटिया के भीतर से सुनायी दिया, ‘‘आयी देव !’’
कुछ क्षण उपरान्त चन्द्रमुखी गरम दूध लेकर उपस्थित हो गयी। चन्द्रमुखी का यह नित्य का अभ्यास था। अतः पण्डितजी की उपासना का समय समाप्त होने तक वह दूध उबालकर तैयार रखती थी और पण्डितजी के पुकारने के कुछ क्षण उपरान्त दूध लेकर उपस्थित हो जाया करती थी।
थाली में दो कटोरे रखे थे और उन दोनों में दूध था। आसन के समीप पहुँच कर पत्नी ने एक कटोरा उठाकर अपने पति के सम्मुख रख दिया। पण्डितजी आवाज देने के उपरान्त पुनः आसन पर आ विराजमान हो गये थे। पण्डितजी ने दूध पीना आरम्भ किया।
चन्द्रमुखी ने पूछा, ‘देव ! आप कह रहे थे कि आज वृहस्पति आने वाला है, वह किस समय आयेगा ?’’
‘‘मेरा अनुमान है कि दो घड़ी तक वह यहाँ पहुँच जायेगा। इस समय वह लगभग एक कोस के अन्तर पर है और इस ओर ही चलता हुआ आ रहा है। किन्तु वह अकेला नहीं है ?’’
‘‘तो क्या सूर्य आदि भी उसके साथ ही आ रहे हैं?’’
‘‘सूर्य आदि नहीं, वे कोई अन्य हैं। मैं समझता हूँ कि वे कल्याणी और मृदुला हो सकती हैं।’’
अपने योगाभ्यास द्वारा अर्जित दिव्य दृष्टि के आधार पर शिवकुमार यह सब देख पा रहा था। चन्द्रमुखी ने पूछा, ‘‘उसको ये कल्याणी और मृदुला कहाँ मिल गयी हैं ?’’
‘‘यह तो उनके यहाँ पहुँचने पर ही विदित हो पायेगा।’’
शिवकुमार अर्द्धरात्रि के उपरान्त पाटलिपुत्र से चला था और सूर्योदय होने तक वह पाटलिपुत्र से दस कोस पश्चिम की ओर पहुँच गया था। सूर्योदय होने पर गंगा के तट पर उन्होंने कुछ विश्राम करने का विचार किया। सारथी ने रथ से घोड़ों को खोलकर गंगा तट पर छोड़ दिया। घोड़ों ने जल पिया और फिर किनारे की रेत पर लोट लगाकर अपनी थकान मिटाने लगे। सारथी ने भी स्वयं हाथ-मुख धोया और अपने थैले में से भुने चने निकालकर चबाने लगा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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