Avasar

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495.00 375.00

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495.00 375.00

Author: Narendra Kohli

Availability: 5 in stock

Pages: 184

Year: 2021

Binding: Hardbound

ISBN: 9788181431950

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

अवसर

एक

सम्राट् की वृद्ध आँखों में सर्प का-सा फूत्कार था, “हूँ।”

बस एक ‘हूँ’। उससे अधिक दशरथ कुछ नहीं कह सके।

ऐसा क्रोध उन्हें कभी-कभी ही आता था। किंतु आज! क्रोध कोई सीमा ही नहीं मान रहा था। आँखें जल रही थी, नथुने फड़क रहे थे; और उस सन्नाटे में जैसे तेज सांसों की सांय-सांय भी सुनाई पड़ रही थी।

नायक भानुमित्र दोनों हाथ बांधे सिर झुकाए स्तब्ध खड़ा था। सम्राट् की अप्रसत्रता की आशंका उसे थी। बहुत समय तक सम्राट् के निकट रहा था। उनके स्वभाव को जानता था। उनका ऐसा प्रकोप उसने कभी नहीं देखा था। यह रूप अपूर्व था। वैसे, वह भी समझ नहीं पा रहा था कि सम्राट् की इस असाधारण स्थिति का कारण क्या था। उसे विलंब अवश्य हुआ; किंतु उससे ऐसी कोई हानि नहीं हुई थी कि सम्राट् इस प्रकार भभक उठें। वह अयोध्या के उत्तर में स्थित सम्राट् की निजी अश्वशाला में से कुछ श्वेत अश्व लेने गया था, जिनकी आवश्यकता अगले सप्ताह होने वाले पशु मेले के अवसर पर थी। अश्व प्रातः राजप्रासाद में पहुंच जाते, तो उससे कुछ विशेष नहीं हो जाता; और संध्या समय तक रुक जाने से कोई हानि नहीं हो गई किंतु सम्राट्…।

वह अपने अपराध की गंभीरता का निर्णय नहीं कर पा रहा था। सम्राट् के कुपित रूप ने उसके मस्तिष्क को जड़ कर दिया था। सम्राट् के मुख से किसी भीं क्षण, उसके लिए कोई कठोर दंड उच्चारित हो सकता था…उसका इतना साहस भी नहीं हो पा रहा था कि वह भूमि का साष्टांग लेटकर सम्राट् से क्षमा-याचना करे…सहसा, सम्राट् जैसे आपे में आए। उन्होंने स्थिर दृष्टि से उसे देखा, और बोले, “जाओ; विश्राम करो।”

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2021

Pulisher

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