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Bharatendu Yug Aur Hindi Bhasha Ki Vikas Parampara
₹995.00 ₹795.00
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Author: Ramvilas Sharma
Pages: 352
Year: 2022
Binding: Hardbound
ISBN: 9788126712571
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
भारतेन्दु युग और हिन्दी भाषा की विकास परम्परा
भारतेंदु युग हिंदी साहित्य का सबसे जीवंत युग रहा है। सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक-आर्थिक हर मुद्दे पर तत्कालीन रचनाकारों ने ध्यान दिया और अपना अभिमत व्यक्त किया, जिसमें उनकी राष्ट्रीय और जनवादी दृष्टि का उन्मेष है। वे साहित्यकार अपने देश की मिटटी से, अपनी जनता से, उस जनता की आशा-आकांक्षाओं से जुड़े हुए थे, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनकी रचनाएँ हैं। लेकिन उनकी, उनके युग की इस भूमिका को सही परिप्रेक्ष्य में देखने-समझने का प्रयास पहली बार डॉ. रामविलास शर्मा ने ही किया। वे ही हिंदी के पहले आलोचक हैं, जिन्होंने भारतेंदु-युग में रचे गए साहित्य के जनवादी स्वर को पहचाना और उसका संतुलित वैज्ञानिक मूल्यांकन किया।
प्रस्तुत पुस्तक इसीलिए ऐतिहासिक महत्त्व की है कि उसमें भारतेंदु-युग कि सांस्कृतिक विरासत को, उसके जनवादी रूप को पहली बार रेखांकित किया गया है। लेकिन पुस्तक में जैसे एक ओर उस युग में रचे गए साहित्य की मूल प्रेरणाओं और प्रवृत्तियों का विवेचन है, वैसे ही दूसरी ओर प्रायः तीन शताब्दियों के भाषा-सम्बन्धी विकास की रूपरेखा भी प्रस्तुत है, जो डॉ. शर्मा के भाषा-सम्बन्धी गहन अध्ययन का परिणाम है।
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Publishing Year | 2022 |
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Language | Hindi |
रामविलास शर्मा
जन्म : 10 अक्तूबर, 1912।
जन्म-स्थान : ग्राम : ऊँचगाँव सानी, जिला उन्नाव (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : 1932 में बी.ए., 1934 में एम.ए. (अंग्रेजी), 1938 में पी-एच.डी. (लखनऊ विश्वविद्यालय)।
देहावसान : 30 मई 2000।
लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में पाँच वर्ष तक अध्यापन-कार्य किया, सन् 1943 से 1971 तक आगरा के बलवंत राजपूत कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष रहे। बाद में आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर के.एम. हिंदी संस्थान के निदेशक का कार्यभार स्वीकार किया और 1974 में अवकाश लिया। सन् 1949 से 1953 तक रामविलासजी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री रहे।
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