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Description
भय भी शक्ति देता है
लीलाधर जगूड़ी की कविता यथार्थ को आंशिकता में नहीं बल्कि उसकी पूरी जटिलता और बारीक़ियों में खोजती आई है। इसी खोज ने उन्हें एक समर्थ कवि की पहचान दी है। लगभग इकहरी और एकआयामी हो रही कविता के मौजूदा दौर में जगूड़ी की ये कविताएँ अनुभव के अनेक आयामों के साथ कुछ चकित करती हैं, कुछ रोमांच से भर देती हैं और अंततः इस तरह विचलित करती हैं कि पाठक के भीतर भी एक प्रक्रिया शुरू हो सके। इन कविताओं में न तो यथार्थ का उत्सव है और न विलाप इनमें यथार्थ की ऐसी आलोचना है जिसमें वे नए और अनजाने पहलू भी प्रकट होते चलते हैं, जो इससे पहले काव्य-अनुभव नहीं बन पाए थे। यहाँ देखने, जानने और जाँचने के इतने तरीक़े हैं, भाषा और शिल्प की इतनी विविधता है और इसके बावजूद अनुभवों की खोज के अनेक नए या अज्ञात रास्तों की संभावनाओं के संकेत भी हैं। यह शायद इसलिए संभव हुआ है कि जगूड़ी के लिए जीवन, कविता और भाषा में से कोई भी चीज आसान नहीं हैं; कहीं सरल रेखाएँ नहीं हैं; इसके बरक्स उलझे हुए रास्ते और तीखे मोड़ हैं जिन पर चलते हुए आगे नए रास्ते और नए मोड़ ही दिखते हैं। इस मानी में यह संग्रह जगूड़ी की काव्य-यात्रा में एक बड़े मोड़ की तरह है जो आगे की यात्रा को आसान नहीं बना देता, बल्कि नए रचनात्मक जोखिमों की ओर ले जाता है। भय भी शक्ति देता है की कविताओं के सरोकार बहुत विस्तृत हैं जिन्हें मोटे तौर पर छह हिस्सों में बाँटा गया है।
जगूड़ी की आलोचनात्मक दृष्टि लोकगीतों और मिथकों के मनुष्य से लेकर आज के आर्थिक मनुष्य तक के संकटों से जूझती है; वह एक पहाड़ी बैल के सपने और दादी की आदिम दुनिया में भी जाती है और आधुनिक टेक्नोलॉजी या युद्धतंत्र की भी जाँच-परख करती है। इस तरह लीलाधर जगूड़ी अपने समय के भौतिक और नैतिक संकटों को कविता में दर्जश् करते हैं और सवाल उठाते चलते हैं। लेकिन वे महजश् यथार्थ का लेखाजोखा या अनुकृति नहीं करते, बल्कि उसकी पुर्नरचना करते हैं। अपने समय से जूझते हुए वे कविता में एक और या समांतर समय की रचना करते हैं, जो खासतौर से इस संग्रह की और आधुनिक हिंदी कविता की भी एक उपलब्धि है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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