Chambal Ke Mahanayak : Arjun Singh Bhadoria
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Description
चंबल के महानायक : अर्जुन सिंह भदौरिया
‘कमांडर’ के नाम से मशहूर अर्जुन सिंह भदौरिया (1910-2004) ने न केवल आजादी की लड़ाई में, बल्कि आजादी के बाद भी देश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए साहस, धैर्य और त्याग के साथ सतत संघर्ष किया। कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने अपनी जुझारू प्रवृत्ति और अपनी संगठन कुशलता से ‘लाल सेना के नाम से एक ऐसी क्रांतिकारी सेना का गठन कर दिया कि अंग्रेज सरकार भी हिल गई। उन्होंने 1942 में अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का बिगुल बजाया था। कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बहुत प्रभावित थे। वे उन्हीं की तरह देश की आजादी के लिए कुछ भी करने को तत्पर थे, इसीलिए उन्होंने चंबल के आस-पास के क्षेत्र को केंद्र बना कर रेल, डाक और तार सेवाएँ ठप कर दीं और अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर दिया था। जब वे पकड़े गए तो उनके पैरों में बेड़ियाँ पहना कर उन्हें कोर्ट में लाया गया था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 44 साल की कैद की सजा सुनाई।
उनका यही जज्बा देखकर आचार्य नरेंद्र देव ने उन्हें ‘कमांडर’ कहा था। बाद में राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण भी उन्हें कमांडर कहने लगे। उनकी पत्नी सरला भदौरिया भी उन्हीं की तरह क्रांतिकारी विचारों की थीं। दोनों का उत्कट देश-प्रेम और भारत की जनता के प्रति उनकी करुणा ने दोनों को सदैव बेचैन रखा। कमांडर साहब आजादी के बाद 1957, 1967 और 1977 में इटावा से लोकसभा के सदस्य रहे। उनकी पत्नी सरला भदौरिया भी सांसद रही थीं। वे अपने जीवन में 52 बार जेल गए। कुछ आजादी के पहले और कुछ आजादी के बाद। आपातकाल में उन्हें, उनकी पत्नी सरला और बेटे सुधीन्द्र भदौरिया तीनों को जेल में डाल दिया गया था।
यह पुस्तक कमांडर साहब के जीवन-संघर्ष के साथ-साथ उस समय के करवट लेते इतिहास के कई अनछुए पहलुओं का दस्तावेज है। कमांडर भदौरिया की जीवनी आजादी की लड़ाई और उसके बाद से सोशलिस्ट पार्टी के इतिहास से अवगत कराती है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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