Dharti Aur Dhan

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Dharti Aur Dhan

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300.00 255.00

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300.00 255.00

Author: Gurudutt

Availability: 4 in stock

Pages: 280

Year: 2016

Binding: Hardbound

ISBN: 9788193308998

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

धरती और धन

प्रथम परिच्छेद

सन्‌ 1931 की बात है। लाहौर रेलवे स्टेशन पर थर्ड क्लास के वेटिंग रूम में एक प्रौढ़ावस्था की स्त्री और उसके दो लड़के, एक दरी में लपेटे, रस्सी में बंधे, बड़े-से बिस्तर पर बैठे, हाथ में रोटी लिये खा रहे थे। रोटी पर आम के अचार का एक-एक बड़ा टुकड़ा रखा था। स्त्री कुछ धीरे-धीरे चबा-चबाकर खा रही थी। वास्तव में वह अपने विचारों में लीन किसी अतीत स्मृति में खोई हुई थी। बड़ा लड़का पन्द्रह वर्ष की आयु का प्रतीत होता था। उसके अभी दाढ़ी मूँछें फूटी नहीं थीं। वह माँ के एक ओर बैठा जल्दी-जल्दी चबाकर रोटी खा रहा था। यह फकीरचन्द था। माँ के दूसरी ओर उसका दूसरा पुत्र, बिहारीलाल, ग्यारह वर्ष की आयु का, बैठा रोटी खा रहा था।

फकीरचन्द ने रोटी सबसे पहले समाप्त की और समीप रखे लोटे को ले, वेटिंग रूम के एक कोने में लगे नल से पानी लेने चला गया। नल के समीप पहुँच, हाथ का चुल्लू बना, उसने पानी पिया और लोटे को भली-भाँति धो, भर, अपनी माता तथा भाई के लिए पानी ले आया।

माँ ने अभी तक रोटी समाप्त नहीं की थी। इस पर फकीरचन्द ने कहा, “माँ, गाड़ी का समय हो रहा है और तुमने अभी तक रोटी समाप्त नहीं की ? जल्‍दी करो न।’’

माँ ने फकीरचन्द के मुख पर देखा और खाना बन्द कर दिया, “इसको उस कुत्ते के आगे डाल दो। खाई नहीं जाती।”

‘‘क्यों ?’’

‘‘कुछ नहीं बेटा ! वह देखो, लालसा-भरी दृष्टि से, मुख से जीभ निकाले इधर ही देख रहा है। लो, इसे डाल दो।’’

बिहारीलाल ने हाथ में पानी लिया। माँ ने भी हाथ का चुल्लू बना पी लिया और स्वयं उठ रोटी कुत्ते को डालने चल पड़ी। फकीरचन्द मुख देखता रह गया।

माँ ने कुत्ते के आगे रोटी फेंकी और वह उसको उठाकर एक कोने में ले गया और खाने लगा। माँ आकर पुनः बिस्तर पर बैठ गई।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2016

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