Doob-Dhan

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Doob-Dhan

Doob-Dhan

199.00 169.00

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199.00 169.00

Author: Anamika

Availability: 4 in stock

Pages: 148

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9789389563054

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

दूब-दान

मार्क्सवाद का अन्तःसंगीत बनकर प्रगतिवादी कविता उभरी, आधुनिकता का अन्तःसंगीत बनकर प्रयोगवादी कविता-इन दोनों के पहले स्वाधीनता आन्दोलन का अन्तःसंगीत छायावादी और छायावादोत्तर कविता में मुखरित हुआ। महाप्रमेयों के ध्वंस के बाद अस्मिता आन्दोलन परवान चढ़े तो नेग्रीच्यूड को जैसा बल अश्वेत कविता से मिला, वैसा ही बल दलित आन्दोलन और स्त्री आन्दोलन को समकालीन कविता से, कविता ने लगातार हमारे सपनों की लौ ऊँची की है, हममें यह एहसास भरा है कि कम-से-कम सपने तो ऐसे हों कि खुलकर साँस आये, सबको सोचने, पढ़ने-लिखने, सोने और प्यार करने का निजी और हँसने-बोलने-बहस करने का सार्वजनिक स्पेस मिले।

पर्यावरण के सिद्धान्त के अनुकूल जीवन में जल तत्त्व का, अग्नि तत्त्व और आकाश तत्त्व का पूरा-का-पूरा विकास हो, किसी का न आकाश छिने, न धरती। सन्तुलन पर्यावरण में आये और दृष्टि में भी। इतना तो समझ ही गये हैं हम कि अस्मिता, भाषा स्मृति, संस्कृति, स्पेस और समय-सब परतदार अनन्त हैं और आपस में गुंथी हुई परतों में आपसी संवाद घटित करती समकालीन कविता स्वाभाविक रूप से अगाध है। जातीय स्मृतियाँ और महास्वप्न इसके घेरे में सन्तुलन बनाये हुए नाचते हैं। एनेस्थेटिक का विलोम तो ‘अनऐस्थेटिक’ ही होगा-बेहोशी की दवा-अनीस्थिसिया का बीज शब्द यही है।

‘अनऐस्थेटिक’ के प्रभाव में हमारी कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियाँ रौंदने लगती हैं, और हम जगत-समीक्षा के लायक ही नहीं रहते, न प्रत्यभिज्ञा के लायक रहते हैं। एम्पैथी और करुणा में ही छुपी हैं सत्य और सौन्दर्य की अर्थछवियाँ। एक वही है जो हमारी क्षुद्रताएँ तिरोहित कर हमें विराट को सम्पूर्णता में धारण कर पाने लायक बनाता है : सब तरह के शासन-प्रशासन, दोहन-शोषण इस क्रम में यों ही उड़ जाते हैं।

Additional information

Weight 0.5 kg
Dimensions 21 × 14 × 4 cm
Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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