Dukhiyari Ladki

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Dukhiyari Ladki

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200.00 155.00

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Author: Taslima Nasrin

Availability: 5 in stock

Pages: 112

Year: 2015

Binding: Hardbound

ISBN: 9788181433206

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

अनुक्रम
दुखियारी लड़की 7
मातृत्व 27
झरी हुई पत्ती 35
कौन है, जो मुझे घर से निकाले ? 57
सीधी-सादी मृत्यु 63
बुझाओ, जीवन-दाह 67
दिन गुज़रते हुए… 72
ब्याह का घर 79
नाम 83
वह जो एक दोस्त है-तसलीमा नसरीन 89

दुखियारी लड़की

जन्म का पाप

मेरे जन्म के समय, मेरी माँ के गले में चार-चार ताबीज़ थे। उस ताबीज़ में बेटा होने की दुआ थी। वह ताबीज़ बेशारतुल्लाह पीर ने दिया था।

पीर साहब के पाँवों पर लोटकर मेरी माँ ने मिन्‍नतें की थीं, ‘‘बेटा ना भया तो मोरा पति हमका तलाक दे देगा, हजूर।’’

पीर साहब भड़भड़ाकर बोलते रहते थे और जब बोलते थे, तो अपनी पाँचों उँगलियों से अपनी दाढ़ी भी सँवारते रहते थे।

छत की सीलिंग की तरफ, अपनी अपार ममतालु आँखें गड़ाकर, उन्होंने फरमाया, ‘‘अल्लाह का नाम लो। अल्लाह के अलावा देनहार मालिक और कोई नहीं है। मैं तो जरिया भर हूँ। आधी रात को अल्लाह का ज़िक्र किया करो। परवरदिगार दो जहाँ के मालिक हैं। तुम उनके सामने रोओ, आलेया ! अगर तू रोएगी नहीं, तो उनका दिल नरम कैसे होगा ? बताओ ? बंदा अगर हाथ फैलाता है, तो अल्लाह उसे कभी खाली हाथ नहीं लौटाता। वे बेहद मेहरबान हैं।’’

आलेया पीर साहब के सामने ही उकड़ूँ होकर जोर-ज़ोर से विलाप कर उठी। बेटा होने की शर्त पर वह आधी रात को ही क्यों, सारी रात अल्लाह का ज़िक्र करेगी।

बेशारतुल्लाह ने अपना हाथ दाढ़ी से हटाकर, आलेया की पीठ पर रखा। उनकी निगाहें कमरे की सीलिंग से फिसलकर, आलेया के घने-काले बालों पर जम गयीं।

‘‘अल्लाह अद्वितीय, निराकार, सर्वशक्तिमान हैं। उनका न आदि है, न अंत। उनका कोई पिता-माता, पुत्र-कन्या नहीं है। वे सब कुछ देखते हैं, मगर हम इंसानों की तरह आँखें नहीं हैं। वे सब कुछ सुनते हैं, मगर उनके कान नहीं हैं। वे सब कुछ कर सकते हैं, फिर हमारे जैसे हाथ, उनके पास नहीं हैं। वे सर्वत्र, सर्वदा विराजमान हैं। वे न तो आहार करते हैं, न निद्रा-शयन करते हैं। उनका कोई आकार नहीं है। ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिससे उनकी तुलना की जा सके। वे सदा विद्यमान थे; सदा विद्यमान रहेंगे। वे लोगों की मोहताजी मिटा देते हैं। उन्हें कहीं, कोई अभाव नहीं है। वे अजर-अमर हैं। उनकी न मृत्यु है, न ध्वंस ! वे परम दाता, असीम दयालु हैं। वे सर्वश्रेष्ठ सम्मान के मालिक हैं, अपने बंदे को वे प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। तुम उनके दरबार में हाथ उठाकर दुआ करो। तुम्हें बेटा ज़रूर होगा। दुनिया-जहान में तुम्हारी इज़्ज़त की हिफाज़त होगी।’’

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Binding

Hardbound

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2015

Pulisher

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