Footpath Ka Samrat

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Footpath Ka Samrat

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125.00 100.00

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Author: Vijay Tendulkar

Availability: 5 in stock

Pages: 48

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9789350723104

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

फुटपाथ का सम्राट

प्रथम अंक

[मुम्बई शहर के किसी दूर-दराज़ गली का फुटपाथ। फुटपाथ पर चढ़ने की सीढ़ी। पिछली दीवार पर तरह-तरह के विज्ञापनों के हैंडबिल चिपकाए हैं। फ्रीस्टाइल कुश्ती, सिनेमा, हड़ताल, चुनाव, आध्यात्मिक प्रवचन आदि। इन्हीं के बीच से ‘यहाँ विज्ञापन लगाना मना है अन्यथा कानूनी कार्रवाई की जाएगी’ का नोटिस झाँकता है।

एक ओर पोस्ट ऑफिस की लाल पेटी। लगता है इस पत्र-पेटी को पोस्ट ऑफिस भूल गया है। ऊपर म्युनिसिपल की बत्ती। उसी का प्रकाश मंच पर फैला है।

फुटपाथ पर एक चारपाई। तीन लोग बैठे हैं। उनके कपड़े, रहन-सहन से वे फुथपाथ निवासी लगते हैं। ढोलक साथ में लिये बैठे हैं।

पर्दा उठते ही दो लोग उठकर सामने आकर प्रेक्षकों का अभिवादन करते हैं। शाहिर वहीं खटिया पर बैठा है। अपनी ही धुन में। उसकी सिर्फ पीठ दिखती है। अभिवादन लोक नाट्य शैली में]

एक : राम राम माय-बाप लोगो ! राम राम ! यह फुटपाथ। हम इसे कहते हैं फुटपाथ सीढ़ी। सीढ़ी। मन्दिर जाने के लिए भी और कोठे में पहुँचने के लिए भी। हमारे बड़े-बुजुर्ग अक्सर कहा करते थे हर किसी को अपनी-अपनी सीढ़ी पर रहना चाहिए। अपनी सीढ़ी मत लाँघो। यह भी कह गये हैं। मन्दिर की सीढ़ी चढ़कर स्वर्ग पहुँच में आता है-ऐसा लोग कहते हैं। कोठे की सीढ़ी अदालत जाने के लिए भी होती है। अदालत की सीढ़ी चढ़कर नरक में भी गये हैं कई। एक सीढ़ी चढ़कर जो गया वह दीन-दुनिया दोनों से गया।

उसे ना स्वर्ग मिलता है और ना ही नरक। उसे मिलती हैं सिर्फ तारीखें। तारीखें। तारीखों पर तारीखें। फँस गया वह फिर तारीखों के जाल में। पर, एक बात है। स्वर्ग पाना है तो सबसे पहले वो भगवान चाहिए-इधर दिल में। वरना मन्दिर क्या और कोठा क्या। दोनों एक जैसे ही। दिल में वह भगवान रहेगा तो कोठे वालों को भी स्वर्ग मिलता है और नहीं होगा तो मन्दिर के लोग भी नरक में जाते रहते हैं।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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