Gram Bangla

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Gram Bangla

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795.00 595.00

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Author: Mahashweta Devi

Availability: 5 in stock

Pages: 314

Year: 2017

Binding: Hardbound

ISBN: 9788171197248

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

ग्राम बांग्ला

ग्राम बांग्ला में सात उपन्यासिकाएँ—ग्राम बांग्ला, सीमान्त, अँधेरे की सन्तान, राजा, स्वदेश की धूलि, लाइफर और तेपान्तरी। कहने को ये अलग-अलग उपन्यासिकाएँ हैं लेकिन समग्रता में ये ग्रामीण बंगाल की ताजा तस्वीर बनाती हैं। वैसे ग्रामीण बंगाल भारत के किसी ग्रामीण समाज से अलग नहीं दिखता। थोड़े-बहुत भौगोलिक-सांस्कृतिक अन्तर के बावजूद वह भारतीय ग्रामीण समाज जैसा ही लगता है। हिन्दीभाषी समाज की तो विशेष निकटता बंगाल से रही है। समाज क्या सिर्फ मुख्यधारा—यानी खाते-पीते-अघाए लोगों का होता है ? क्या लेखक सिर्फ इन्हीं के जीवन के इर्द-गिर्द ध्यान रखता रहेगा ? प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी के सामने स्पष्ट रहा है कि मुख्यधारा समृद्ध है, मगर संख्या में छोटी है। समाज में बृहत्तर हिस्सा हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों का है। और, ऐसे लोग साहित्य की उपेक्षा के भी शिकार रहे हैं। इसीलिए वे समाज के सीमान्त पर बसे लोगों को अपनी संवेदना-सहानुभूति का केन्द्र बनाती हैं। इसीलिए वे स्टेशन के फेरीवालों, आदिवासियों, छोटी जगहों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं, सपेरों, डायन करार दी गई स्त्रियों जैसे चरित्रों एवं छोटी-छोटी संख्या वाले समुदायों पर लिखती हैं।

खूब लिखती हैं और कलात्मक उत्कर्ष की परवाह किए बगैर लिखती हैं। ‘‘अब मुझमें साहित्य के शिल्पगत उत्कर्ष का कोई आग्रह नहीं रहा।’’ लेकिन नई विषय-वस्तु के संधान का उत्साह और साहस उनमें हमेशा बरकरार रहा। पूरे संकलन में यह साहस दीखता है। पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय वामपन्थी सरकार द्वारा बटाईदारों के पक्ष में चलाए गए ऑपरेशन वर्गा की असलियत वह बेहिचक सामने लाती हैं। वर्ग-संघर्ष के बारे में वे सवाल करती हैं—यह कैसा वर्ग-संघर्ष है जिसमें एक ही वर्ग के लोग एक-दूसरे के शत्रु बन रहे हैं ? ‘सीमान्त’ में वे कहती हैं—‘सती-साध्वी होना एक प्रकार का रोग है। एक बार पकड़ लेता है तो कभी छोड़ता नहीं।’ यह संकलन बिरल लेखकीय साहस का प्रतिमान है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2017

Pulisher

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