-24%
Hari Ghaas Ki Chhappar Wali Jhopadi Aur Bauna Pahad
₹250.00 ₹190.00
₹250.00 ₹190.00
₹250.00 ₹190.00
Author: Vinod Kumar Shukla
Pages: 136
Year: 2018
Binding: Paperback
ISBN: 9789388183123
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़
विनोद कुमार शुक्ल ने उपन्यास के क्षेत्र में एक नए मुहावरे का अविष्कार किया है। वे उपन्यास के फार्म की जड़ता को जड़ से उखाड़कर, सजगतापूर्वक नए फार्म और शिल्प का लहलहाता हुआ नया संसार रचते हैं। ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपडी और बौना पहाड़’ उनका नया उपन्यास है। इसे विनोद जी ने किशोर, बड़ो और बच्चों का उपन्यास माना है।
इस उपन्यास में बच्चों की मित्रता के साथ ही अमलताश वाला पेड़ है, हरेवा नाम का पक्षी है, बुलबुल, कोतवाल, शौबीजी, किलकिला, दैयार, दर्जी, मधुमक्खी का छत्ता और छोटा पहाड़ है। इसे फैंटेसी कहें या जादुई यथार्थवाद या फिर हो सकता है कि आलोचकों को विनोद जी की इस भाषा, शैली और कल्पनाशीलता के लिए कोई नया ही नाम गढ़ना पड़े। फंतासी की इस बुनावट में एक ताजगी और नयापन है। गल्प व् कल्प की जुगलबंदी में गद्य और पद्य की सीमा रेखा मिटती जाती है। सच तो यह है कि विनोद कुमार शुक्ल के कल्पना-जगत में भी वास्तविक संसार ऐसा है जो जीवंत और रचनात्मकता के आनंद से भरा-पूरा है। उपन्यास में बच्चों की सपनीली दुनिया जैसी सुन्दर बातें हैं। भाषा की चमक के साथ भाषा का संगीत भी कथा को मोहक बनाता है। भाषा का आंतरिक गठन कथ्य के साथ ही वर्तमान के बोध को भी जीवंत बनाता है। हमारी और बच्चों की भागती-दौड़ती जिंदगी में मीडिया की मायावी संस्कृति, सबको बाजार या ग्लोबल मंडी में जकड लेना चाहती है, इन्टरनेट, चिटचेट के साथ उत्तेज्नामूलक समाचारों के बीच परंपरा और संस्कृति में मिली दादी-नानी की कहानियों से बच्चे दूर होते जा रहे हैं। ऐसे जटिल समय में भी प्रकृति और परंपरा से संपृक्त ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपडी’ उपन्यास की यह नई संरचना अनूठी है।
Weight | 0.5 kg |
---|---|
Dimensions | 21 × 14 × 4 cm |
Authors | |
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
विनोद कुमार शुक्ल
जन्म : 1 जनवरी, 1937 को राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) में।
सृजन : पहला कविता संग्रह 1971 में लगभग जयहिन्द (पहल सीरीज़ के अन्तर्गत), वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह (1981), सब कुछ होना बचा रहेगा (1992), अतिरिक्त नहीं (2000), कविता से लम्बी कविता (2001), कभी के बाद अभी (सभी कविता-संग्रह); 1988 में पेड़ पर कमरा (पूर्वग्रह सीरीज़ के अन्तर्गत) तथा 1996 में महाविद्यालय (कहानी संग्रह); नौकर की कमीज़ (1979), दीवार में एक खिड़की रहती थी, खिलेगा तो देखेंगे, हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ (सभी उपन्यास)।
Reviews
There are no reviews yet.