Hi ! Handsome

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Author: Jayvardhan

Availability: 5 in stock

Pages: 80

Year: 2014

Binding: Hardbound

ISBN: 9789380146553

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

हाय ! हैंडसम

दृश्य 1

[सुबह का समय। बैठकनुमा एक बड़ा कमरा। टेपरिकॉर्डर पर कोई भक्ति-गीत बज रहा है। एक कोने में भगवान् की मूर्ति के सामने स्वामी बैठा है, जो पूजा में तल्लीन है। मुहल्ले के दो-चार बच्चे प्रसाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं। बच्चे बीच-बीच में संगीत पर नाचने लगते हैं। गीत समाप्त होने पर स्वामी अपना माथा टेकता है, फिर प्रसाद की थाली लेकर दरवाज़े की ओर बढ़ता है। इस समय स्वामी के शरीर पर कपड़े के नाम पर मात्र लम्बा अण्डरवियर और कन्धे पर तौलिया है। स्वामी दरवाज़े की ओर बढ़ता ही है कि टेपरिकॉर्डर पर दूसरा बेतुका गाना बजने लगता है। स्वामी फ़ौरन जाकर टेपरिकॉर्डर बन्द करता है।]

स्वामी : छिः, कितना प्रदूषित गीत है।
लड़का : स्वामी अंकल, बजने दीजिए न !
लड़की : हमारी मम्मी इस गाने पर बहुत अच्छा डांस करती है।
स्वामी : इसके सिवा तुम्हारी मम्मी को और कुछ आता है…? चलो, प्रसाद लो और चलते बनो।
लड़का : स्वामी अंकल, आज लड्डू की जगह केले ?

स्वामी : क्या करें, दिल्ली बन्द है। ये तो कहो कि घर में केले पड़े थे।
लड़की : वरना आपके कन्हैया को भूख हड़ताल करनी पड़ती।
लड़का : भूख हड़ताल क्यों ? बटर की एक टिक्की खिला देते। जानती नहीं, कन्हैया को माखन बहुत पसंद था, तभी उन्हें माखनचोर कहते हैं।

लड़की : चोर ! अंकल, आप चोर की पूजा करते हैं ?
स्वामी : अंकल की बच्ची, चुप ! चल भाग यहाँ से !

[स्वामी बच्चों को भगाता है। उसी समय बाहर से स्वामी के पिता आते हैं। हाफ़ पैंट में चुस्त-दुरुस्त। एक हाथ में दूध की बाल्टी, दूसरे हाथ में छोटा-सा रूल। स्वामी बढ़कर पहले पैर छुता है, फिर दूध की बाल्टी ले लेता है। पिताजी जाकर कैप उतारते हैं और रूल रखते हैं।]

पिता : कितनी बार कहा है—मेरा पैर मत छुआ करो। दुनिया इक्कीसवीं सदी में जा रही है और मेरे पुत्र रामराज्य में जी रहे हैं। सुबह उठकर माता-पिता का पैर छूना। सुबह-सुबह किशन-कन्हैया की पूजा करना। एम०ए० पास दर्शनशास्त्र में। ग़लती हो गयी, तुम्हें किसी मॉडर्न स्कूल में पढ़ाना चाहिए था।…दर्शनशास्त्र की जगह कोई और शास्त्र पढ़ाना चाहिए था।…जाकर शेविंग सेट लाओ।

[स्वामी लाकर देता है।]

पिता : मिलिट्री ने मुझे रिटायर कर दिया, बूढ़ा मानकर। उनके मानने से क्या होता है, मैं अपने आप को बूढ़ा नहीं मानता। हाँ, ये पूजा-पाठ और बालों की सफ़ेदी देखकर तुम पर ज़रूर शक़ होने लगा है।
स्वामी : पिताजी, आपके बाल मेरे से ज़्यादा सफ़ेद हैं। दरअसल आप दिखाई देते ही उन पर कैंची चलाते रहते हैं, इसीलिए…।

पिता : तुम्हें किसने मना किया है ? तुम भी कुछ करो, मैं भी यही चाहता हूँ।…बहू क्या कर रही है ?
स्वामी : सो रही है। रात में देर से सोई थी।
पिता : तो जाओ, बेड-टी बनाकर ले जाओ और उसे जगाओ। इतने सालों से मैं यही देख रहा हूँ, तुम जागते रहे हो और वो सोती रही है। तुम दोनों को एक बच्चा पैदा करने की फुरसत नहीं है।

स्वामी : फुरसत की बात नहीं है पिताजी ! मंदा कहती है, किसी भी काम में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए।
पिता : जल्दबाज़ी ! अपनी मंदा को ज़रा अपने बारे में भी बता देना। दो दिन बाक़ी थे नौ महीने में और तू आ टपका था। नालायक कहीं का ! तीस साल की उम्र में इसे जल्दबाज़ी नज़र आ रही है।…स्वामी, तूने मोहल्ले के बदमाश लड़कों से दोस्ती क्यों नहीं की ?

स्वामी : क्या ? आप अपने इकलौते बेटे को बदमाश बनाना चाहते हैं ?
पिता : मिट्टी का लोंदा होने से तो बदमाश होना बेहतर है। कम से कम दुनियादारी तो सीख जाते। बरखुरदार, जीने के लिए पहले जीना सीखो। मैं दावे से कह सकता हूँ कि जीना और मरना सिर्फ़ फ़ौजी जानते हैं, आम लोग इस दुनिया से कोसों दूर हैं।
स्वामी : मुझे भी कुछ सिखा दीजिए।

पिता : बाप ना होता तो ज़रूर सिखा देता। इतने सालों की ज़िंदगी यूँ ही न बरबाद करने देता।
स्वामी : जो हो गया सो हो गया। अब से ही कुछ बताइये।
पिता : मानोगे ?
स्वामी : मानेंगे ।
पिता : करोगे ?

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Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2014

Pulisher

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