Itihas Smriti Akansha
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इतिहास स्मृति आकांक्षा
क्या मनुष्य इतिहास के बाहर किसी और समय में रह सकता है ? क्या हम वही हैं जो हम दिखाई देते हैं या बीते हुए समय की प्रकृति, लाखों जीव-जन्तुओं और ख़ुद मनुष्य की सैकड़ों सृष्टियाँ हमारी चेतना में कहीं मौजूद हैं ? क्या आज का मनुष्य अतीत की अनेकानेक विस्मृत सृष्टियों का स्मारक है ? आधुनिक मनुष्य जिसका अस्तित्व इतिहास और स्मृति के दो छोरों पर अटका हुआ है, और जिसकी आत्मखंडित चेतना अवधारणा तथा वास्तविकता के बीच झूलती रहती है, अपने सत्य तक कैसे पहुँचता है ? कलाकृति का सत्य क्या है ? धार्मिक और सेक्युलर के विभाजन ने हमारे सांसारिक अनुभवों को कैसे प्रभावित किया ?
ये और ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिन पर निर्मल वर्मा इस पुस्तक में शामिल व्याख्यानों में अपनी विशिष्ट चिन्तन-शैली में विचार करते हैं। स्मृति, इतिहास, विचारधारा, कला-अनुभव और साहित्य के अनेक आधारभूत प्रश्नों पर उन्होंने निबन्धों में भी बार-बार विचार किया है, इन व्याख्यानों में वह प्रक्रिया और घनीभूत दिखाई देती है।
‘वत्सल निधि’ द्वारा आयोजित डॉ. हीरानन्द शास्त्री स्मारक व्याख्यान माला की दसवीं कड़ी (1990) के रूप में दिए गए ये व्याख्यान निर्मल वर्मा के चिन्तक पक्ष को गहराई से रेखांकित करते हैं और हमें पुनः उन प्रश्नों पर लौटने को आमंत्रित करते हैं जिन्हें हमने बीते दो-तीन दशकों में साहित्य-चिन्तन की परिधि से जैसे बाहर ही कर दिया है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Pulisher | |
Publishing Year | 2024 |
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