Jhansi Ki Rani

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Jhansi Ki Rani

Jhansi Ki Rani

150.00 125.00

In stock

150.00 125.00

Author: Jayvardhan

Availability: 4 in stock

Pages: 84

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9789380146539

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

झाँसी की रानी

जयवर्धन का ‘झाँसी की रानी’ नाटक इसी क्रम की एक कड़ी है। यह सही है कि उन्होंने उस लडाई की सबसे ज्यादा परिचित और रेखांकित नायिका महारानी लक्ष्मीबाई को अपने नाटक के केंद्र में रखा है, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने उस अल्पज्ञात इतिहास को भी पुनर्रचना करने की कोशिश की हैं, जो लक्ष्मीबाई के बचपन से लेकर युवा होने तक का इतिहास है। नाटक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि रचनाकार ने गीत-संगीत  अथवा सूत्रधार जैसी किसी भी बार-बार आजमायी हुई नाटकीय युक्ति का प्रयोग नहीं किया, उन्होंने फॉर्म अथवा शैली के स्तर पर यथार्थवादी शैली का चुनाव किया है और उसमें बहुत ही सरल और सहज तरीके से कथा को विकसित करते चले गए हैं।

दृश्य 1

[पेशवा बाजीराव द्वितीय का बैठकख़ाना, साथ में हैं बालगुरू और तात्या]

पेशवा : बालागुरू, आपके अखाड़े का काम कैसा चल रहा है ?
बालागुरू : अद्भुत। लगभग दर्जनभर लड़के हैं। मलखंब, कुश्ती, तलवार-बाज़ी में सब एक से बढ़कर एक, लेकिन महाराज, आपके दीवान मोरोपन्त की लड़की मनु का कोई जवाब नहीं। हर काम में लड़कों से दो हाथ आगे। सारे के सारे लड़के एक तरफ़ और अकेली मनु एक तरफ़। आ-ह-हा, क्या चमक है ! आगे भी यही लगन बनी रही तो बिठूर का नाम ज़रूर रौशन करेगी। बालागुरू की भविष्यवाणी है।[मोरोपन्त का प्रवेश]
मोरोपन्त : महाराज, झाँसी के ज्योतिषाचार्य तात्या दीक्षित आये हैं। आपसे मिलना चाहते हैं।
पेशवा : अवश्य। बुलवाइये। तात्या, जाओ, दीक्षित जी को अपने साथ ले आना।
[तात्या दीक्षित जी को लेने बाहर चला जाता है।]बालागुरू : महाराज ! अब मैं चलने की आज्ञा चाहूँगा। शाम को समय मिले तो अखाड़े पर आइये और बच्चों को अपना आशीर्वाद दीजिये। मोरोपन्त साहब, आप भी आज आकर अपनी बेटी का हुनर देख जाइये और हाँ, साथ में अपने तात्या और झाँसी के तात्या दीक्षित को लाना मत भूलिएगा। आप सबको ख़ूब आनन्द आयेगा। प्रणाम !
[पेशवा हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। गुरुजी प्रणाम करके बाहर चले जाते हैं।]
पेशवा : मोरोपन्त, नाना और राव घुड़सवारी करके आ गये क्या ?

मोरोपन्त : अभी कहाँ आये महाराज। एक दूसरे से आगे निकल जाने के चक्कर में तीनों दूर निकल जाते हैं। काफ़ी समय हो गया, अब आते ही होंगे।
[तात्या टोपे के साथ तात्या दीक्षित का आगमन]
दीक्षित : महाराज पेशवा बाजीराव को तात्या दीक्षित का प्रणाम !
[तात्या टोपे अन्दर छोड़कर चला जाता है।]

पेशवा : आइये-आइये दीक्षित जी, क्या हाल है आपकी झाँसी के ? राजकाज कैसा चल रहा है ?
दीक्षित : अंग्रेज़ जैसा चला रहे हैं, चल रहा है।
पेशवा : और क्या हाल हैं, आपके महाराज गंगाधर राव के ? सुना है, कला के बड़े रसिक हैं ?
दीक्षित : कला और साहित्य दोनों के रसिक हैं। उनके पुस्तकालय में नाना प्रकार की हस्तलिखित पुस्तकों का विशाल भण्डार है, लेकिन नाटकों का उन्हें विशेष शौक़ है। अनेक संस्कृत नाटकों का हिन्दी में अनुवाद करवाया है। महल के ठीक पीछे एक नाटकशाला है, जिसमें महाराज स्वयं भी अभिनय करते हैं।
पेशवा : बहुत ख़ूब !

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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