Kaal Purush : Krantikari Veer Savarkar
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कालपुरुष : क्रांतिकारी वीर सावरकर
कुछ लोग इतिहास बन जाते हैं और कुछ लोग इतिहास रचते हैं। क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने इतिहास रचा। बचपन में मां द्वारा सुनाई गई देशभक्ति की कहानियों ने मन में भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए जो अलख जलाई, वो जीवन का लक्ष्य बन गई। छत्रपति शिवाजी उनकी प्रेरणा और आदर्श थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके मार्गदर्शक रहे हैं। देश के लिए चापे़फ़कर बंधुओं को प़फ़ांसी के फंदे पर झूलते सुना। बाल मन विह्नल हो उठा। अल्पवय में कुलदेवी के सम्मुख शपथ ली-‘‘मैं अपने देश को आज़ादी दिलाने के लिए सशस्त्र क्रांति का झंडा हाथ में ले, मारते हुए चापे़फ़कर बंधुओं सा मरूंगा या शिवाजी की तरह विजयी होकर मातृभूमि के मस्तक पर स्वराज्य का राज्याभिषेक करवाऊंगा।’’ पंद्रह वर्ष की आयु में चापे़फ़कर बंधुओं पर एक फटका (छंद) लिखा, जो काप़फ़ी लोकप्रिय हुआ और विशेष अवसरों पर गाया जाने लगा। विद्यासागर आनन्द ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि सावरकर जैसे स्वतंत्रता-सेनानियों के अवदान से आंखें मूंद लेना, भारत के राष्टंीय अभिलेखागार के स्वर्णिम पृष्ठों को जानबूझकर नकारना है।
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म महाराष्टं के नासिक िज़ले के भगूर गांव में हुआ था। पिता दामोदर पंत सावरकर (अण्णा) एक ब्राह्मण ज़मींदार थे। प्रतिदिन घर कास्तकारों और श्रमिकों का आना-जाना होता था। विनायक स्वतः सबकी आवभगत करते। ये सारे लोग विनायक को छोटे ज़मींदार कहते थे। विनायक को प्यार से सब तात्या कहा करते थे। तात्या तीन भाई थे और एक बहन थी। बड़े भाई का नाम गणेशराव सावरकर (बाबा) और छोटे भाई का नाम नारायणराव सावरकर (बाला) था। नौ वर्ष की आयु में मां राधाबाई का निधन हो गया था और जब तात्या 16 वर्ष के थे, तब पिता का निधन प्लेग से हो गया। एक दिन चापे़फ़कर बंधुओं पर लिखे अपने फटके को तात्या तन्मय होकर गा रहे थे। पिता ने पूछा-तात्या! ये स्तुति तुमने लिखी है?—हां। कब लिखा?—रोज़ रात में जागकर लिखता हूं। कल ही पूरा किया। अण्णा ने सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा-अच्छा लिखा है। पर छपाने के फेर में न पड़ना। सरकार बिप़फ़री हुई है। अपने घर-द्वार पर हल जुतवा देगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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