Kaali Aandhi

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Kaali Aandhi

Kaali Aandhi

199.00 149.00

In stock

199.00 149.00

Author: Kamleshwar

Availability: 5 in stock

Pages: 128

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9789386534118

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

काली आँधी

सुप्रसिद्ध उपन्यासकार कमलेश्वर का यह उपन्यास उनके लेखन को एक नए परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करता है क्योंकि इसका कथानक देश की ऐसी सम-सामयिक राजनीति से प्रभावित हैं, जिसमें नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है और भ्रष्टाचार पनपा है। राजनीति में चलने वाली उठक-पटक को पूरी जीवन्तता के साथ ‘काली आँधी’ के पात्रों ने किया है। ईमानदारी से कही गई यह कहानी यथार्थ के इतने नजदीक है कि पाठक आद्योपान्त इसका रस लेता है। इस उपन्यास पर फिल्म भी बन चुकी हैं, यह इसकी लोकप्रियता का एक और प्रमाण है।

जग्गी बाबू मेरे दोस्त हैं। होटल गोल्डन सन के मैनेजर। होटल के मैनेजरों के बारे में तरह-तरह की ऊँची-नीची बातें रहती हैं, पर जग्गी बाबू इस पेशे में अपनी तरह के अलग आदमी हैं। मुझे मालूम है कि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी को क्यों एक जगह रोक रखा है। कहने के लिए कुछ भी कहा जा सकता है। पर आदमी की तकलीफ की असलियत जानना शायद बहुत मुश्किल होता है।

औरों से क्या कहूं, अब तक खुद अपने घर में मैं यह साबित नहीं कर पाया कि जग्गी बाबू के भीतर एक ऐसा इन्सान बैठा हुआ है जो अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए रोता है…सच कहूं, तो मालती के लिए रोता है। मालती के लिए यह आदमी अपनी ज़िन्दगी को पकड़कर बैठ गया है—न ज़िन्दगी को आगे बढ़ने देता है, न पीछे हटने देता है।

कभी आप जग्गी बाबू के कमरे में जाइए। होटल गोल्डन सन के टैरेस पर बने दो कमरों के अपार्टमेंट में वे अकेले रहते हैं। मैनेजर हैं, इसलिए उन्हें वहीं रहने के लिए जगह भी मिल गई है। उनके कमरे में दो खास चीज़ें हैं, एक डिब्बा, जिसमें उनकी प्यारी बिटिया लिली के खत रखे रहते हैं और दूसरी है एक घड़ी, जो हमेशा बंद रहती है। वक्त को नापते-नापते एक दिन अचानक वह रुक गई। जग्गी बाबू ने उसे चलाया नहीं न उसे चाबी दी।

मैंने एक दिन उनसे पूछा था—यह घड़ी खराब हो गई है ? जब आता हूं, हमेशा एक वक्त पर अटकी मिलती है !

जग्गी बाबू मुस्करा दिए थे। फिर बोले थे—क्या यह जरूरी है कि घड़ी खराब हो जाए, तभी रुके ! उसे किसी खास वक्त पर खुद भी तो रोका जा सकता है….

–तो इसे चलाया भी जा सकता है !

वे फिर फीकी-सी हंसी हंसे थे—तुम भी क्या बात करते हो ! वक्त चलता है…यह घड़ी चलते-बदलते हुए वक्त को सिर्फ नापती है। और वक्त को नापने की ख्वाहिश अब मुझमें नहीं…

–बदलने की ताकत सबमें नहीं होती…जिनमें होती है वे भी वक्त को बदलते-बदलते खुद बदल जाते हैं…वे, जिनके पास यह शक्ति है, शायद वक्त को बदलना भी नहीं चाहते…सिर्फ वक्त का इस्तेमाल करना चाहते हैं।

मैं जान रहा था कि जग्गी बाबू के भीतर की कौन-सी चोट बोल रही थी। एक तरह से कहें तो यह बहुत व्यक्तिगत चोट है पर खुली आँखों से देखें तो यह सबकी चोट है।

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Binding

Paperback

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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