Kahani Ab Tak-2 (1991-2006)

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Kahani Ab Tak-2 (1991-2006)

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Author: Bhagwandas Morwal

Availability: 5 in stock

Pages: 352

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9789355188243

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

कहानी अब तक-2 (1991-2006)

स्थानीयता, नोकाचार पराये से लगने रीति-रिवाज, बन्धनहीन धर्म और एक विशिष्ट ग्रामीण जीवन-परम्परा को अस्सी मॉडल उर्फ सुवेदार की कहानियों में इस तरह उठाया है कि कहानी जैसी साहित्यिक रचना के आवश्यक अंग बन गये हैं और यही कहानी में एक ताज़गी दिखाई देती है।

– अनिल सिन्हा इंडिया टुडे, 23 फरवरी, 1991

इनके पात्रों की विशेषता यह है कि वे एक रेखीय नहीं है और मोरवाल ने भी उन्हें किसी सपाट खाँचों में ढालने की ज़िद नहीं की। दूसरी बात यह है कि इन कहानियों में मुसलिम और निम्न वर्ग जीवन के जैसे सजीव चित्र आये हैं, वे मानो दुर्लभ होते जा रहे हैं मोरवाल विमर्शवादी लेखन के पक्षधर नहीं हैं और उनका भरोसा व्यापकता में है।

– पल्लव

जनसत्ता 12 अक्टूबर, 2018

भगवानदास मोरवाल सिर्फ कहानियों लिखने के लिए कहानियाँ नहीं लिखते हैं, बल्कि अरसे तक मन-ही-मन किसी चिन्ता या समस्या से जूझते हुए अपने सामने उपस्थित यथार्थ या ऊपर-नीचे आगे-पीछे, अन्दर-बाहर प्रायः हर तरह से आकलन करते हुए घटनाओं और पात्रों को सुनिश्चित करते हैं। पहली नज़र में लगता है मोरवाल किसी समस्या को डील करने के मकसद से उसका कथात्मक निरूपण और आख्या कर रहे हैं। हालांकि यहाँ किसी तरह की कोई सांचावद्धता या वैचारिक यान्त्रिकता नहीं पायी जाती है। बल्कि कहना होगा कि साँचावद्धता और वैचारिक यान्त्रिकता से मोरवाल का दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं । मोरवाल की सफलता और सृजनात्मकता इसी बात में है कि वैचारिकता या कहें कि विमर्शमूलकता घटनाओं और पात्रों के आपसी तनाव और संघट्ट से स्वतः यहाँ फूटती और पूरी कहानी को आलोकित करती नज़र आती है।

– डॉ. शंभु गुप्त

वरिष्ठ आलोचक, परिकथा (द्विमासिक)

भगवानदास मोरवाल की गहरी पकड़ अपने मेवात के इस ग्रामीण परिवेश पर है जो अपनी सोंधी गन्ध से सारे परिदृश्य के ज़र्रे-ज़र्रे को अनुपम आत्मीयता और सहज सौन्दर्य से भर देता है। रेणु के बाद अगर किसी लेखक ने ग्रामीण अंचल की देसी मुहावरों से सजी-धजी विविधवर्णी लोक-सौन्दर्य की अनश्वरता को उसके तमाम मैलेपन के बादजूद पहचान कर लिपिबद्ध किया है तो बेशक यह श्रेय इस लेखक को जाता है, जो एक गहरे अन्तरंग प्रेम और उतनी व्याकुल करुणा से एक ऐसा कोलाज रचता है जो मूल्यों के निरन्तर क्षरण होती हुई स्थितियों के प्रति हमारी सोयी हुई संवेदनाओं को जगा कर हमें फिर एक बार मिट्टी की जड़ों से जोड़ने का उपक्रम करता है।

– मुकेश वर्मा

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Binding

Paperback

Authors

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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