Khuli Aankh Aur Anya Kavitayen

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Khuli Aankh Aur Anya Kavitayen

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250.00 190.00

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250.00 190.00

Author: Udayan Vajpayee

Availability: 5 in stock

Pages: 168

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9788119835393

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

खुली आँख और अन्य कविताएँ

गणित के किसी प्रश्न को हल करने पर मन में जो रसमय शिथिलता आती है या प्रेम कर लेने के बाद जो रसमय थकान हम पर छा जाती है—जो रस के अनुभव के आगे है और इसलिए रस से जुड़ी हुई है, उसका विस्तार या बढ़त है, उदयन वाजपेयी की कविता इन्हीं अनुभवों की कविता है। हम कविता में भारतीय आधुनिकता की बात करते आए हैं किन्तु पाश्चात्य आधुनिकता के प्रभाव को ही भारतीय कविता की आधुनिकता बता देते हैं। उदयन की कविताएँ भारतीय कविता की शताब्दियों पुरानी परम्परा का विकास है, यह हमारी अपनी आधुनिकता है। यदि हमारे इतिहास में औपनिवेशिक विदारण (colonial rupture) न होता तो कविता कहाँ पहुँचती उदयन की कविता उसका प्रतिमान स्थापित करती है। इतिहास बदला भी जाता है और समय से बचकर नहीं बल्कि समय से जूझकर बदला जाता और कविता समय से अपने ढंग से जूझती है। जूझने का उसका ढंग क्या होता है इस संग्रह को पढ़कर जाना जा सकता है। यहाँ ‘छन्द एक फाँस की तरह मेरी/अंगुलियों में गड़ा है, रह रह कर/ टीस उठ रही है’, जूझने की यह भूमि लिखना चाहने और लिख पाने के मध्य है। जैसे हीगल के अनुसार वृक्ष तब तक सुन्दर नहीं हो जाता जब तक कि द्रष्टा उसे अपनी मनोदशा में रंगकर बाहर नहीं रख देता उसी तरह यहाँ कवि ने पूरे संसार को रंग से भरी हुई अपने मन की बाल्टी में डुबाकर पुनः बाहर रख दिया है।

संसार में आकर जो नाटक हमें गड्डमड्ड (chaotic) दिखायी देता है वहाँ ये कविताएँ किसी अभिनेत्री की भाँति अपने आने की बारी की धीरज से प्रतीक्षा करती हैं और अपने एस्थेटिक अनुभव से उसे एक तारतम्य तो देती हैं मगर उसके गड्डमड्ड-पन को भी वैसा का वैसा रखती हैं। जो संसार में होने वाली हिंसा और मंच पर होने वाले युद्ध में सौन्दर्य का, कविता का फ़र्क है, कवि यहाँ उसी के संधान में जुटा है।

 

अशुद्ध होने पर ही हमें भाषा का अनुभव होता है अन्यथा वह नेपथ्य में हमारे लिए निरन्तर काम किये जाती है। कविता ही एकमात्र ऐसी विधा है जहाँ भाषा हमें सशरीर अनुभव होती है, हम उसके शरीर को अपनी प्रेयसी के शरीर की तरह अनुभव कर सकते हैं। उदयन की कविता में भाषा की यह सशरीर उपस्थिति किसी आकस्मिक परिघटना से कहीं अधिक है। उसकी आठों पुरियाँ जागरित हैं।

साहित्य में हठात्दृष्ट (epiphany), सहसा दिख या अनुभव होनेवाले इलहामों पर तो बहुत विचार है लेकिन एक हठात्दृष्ट और होता है। यहाँ हठात् योगियों के हठ से आया है। जब कवि रसातल पर या मानो किसी सूनी दीवार पर ध्यान लगाता है और प्रतीक्षा करता है रसातल पलटकर देखे, यहाँ कविता अनायास प्रकट न होकर तप से प्रकट होती है। यह कविताएँ तपस्पूत मानस की कविताएँ हैं। जीवन की, संसार की कामनाएँ इसे बढ़ाए चली जाती हैं इसलिए इसके सहस्रों चक्षु हैं और जितना यह बाहर देखती है उतना भीतर भी, जितना यह दूसरे को देखती है उतना खुद को भी। आँख केवल बाहर ही नहीं खुलती भीतर भी खुलती है, कमल सरोवर के बाहर ही खिलता यदि प्रकाश हो तो कहीं अधिक कोमल कहीं अधिक सुन्दर और सुगन्धित कमल जल के भीतर भी खिलता है।

—अम्बर पाण्डेय

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Authors

ISBN

Binding

Paperback

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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