Kriti Vikriti Sanskriti

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Kriti Vikriti Sanskriti

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395.00 335.00

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Author: Satyaprakash Mishra

Availability: 5 in stock

Pages: 310

Year: 2010

Binding: Hardbound

ISBN: 9788180315305

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

कृति विकृति संस्कृति

सत्यप्रकाश मिश्र हिन्दी आलोचना में साहित्यिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों एवं उनसे निःसृत समाजवादी मान-मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में किसी भी कृत और प्रवृत्ति का मूल्यांकन करने वाले एक सेक्यूलर आलोचक थे। समकालीन हिन्दी आलोचना भाषा को उन्होंने जो आवाज दी वह अपने आप में अकेली और अनोखी है। इस आवाज में जहां तीक्षा असहमति का स्वर है वहाँ भी सप्रमाण तर्कशक्ति के साथ विषय और संदर्भों का विवेकपूर्ण प्रकटन है जिसको पढ़कर लगता है कि हिन्दी आलोचना के लिए इस तरह के आलोचना कर्म की जरूरत आज और भी अधिक है, क्योंकि समकालीन हिन्दी आलोचना परिचय-धर्मिता का शिकार हो रही है।

प्रो. मिश्र यह मानते हैं कि आलोचक का कार्य केवल उद्धारक या प्रमोटर का नहीं होना चाहिए। रचनाकार, उसके परिवेश और कृति को समग्रता में समझने के कार्य को वह आलोचना का प्रमुख कार्य मानते हैं। इस पुस्तक में नवें दशक की हिन्दी कविता पर लिखा उनका लम्बा लेख इसका उदाहरण है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी और नन्द दुलारे वाजपेयी के पश्चात् व्यापक सामाजिक चेतना वाले आलोचकों-रामविलास शर्मा, विजयदेव नारायण साही, नामवर सिंह और मैनेजर पाण्डेय की आलोचना-दृष्टि, पद्धति और प्रविधि तथा मूल्यांकन क्षमता की परख करते हुए इस पुस्तक में सत्यप्रकाश मिश्र ने हिन्दी आलोचना के विकास-क्रम को निर्दिष्ट किया है। वे अपने प्रिय आलोचक साही की ही तरह यह मानते थे कि ‘आलोचना के मुहावरे को गलत बनाम सही, झूठ या अपर्याप्त सच बनाम सच का रूप ग्रहण करना ही चाहिए। ‘कृति विकृति संस्कृति, इसी आलोचनात्मक मुहावरे का रूपाकार है।

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2010

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