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Nagarjun Antrang Aur Srijan Karm
₹600.00 ₹510.00
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Author: Murli Manohar Prasad Singh
Pages: 308
Year: 2014
Binding: Hardbound
ISBN: 9788183618542
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
नागार्जुन : अंतरंग और सृजन-कर्म
नागार्जुन : अन्तरंग और सृजन-कर्म – यह पुस्तक नागार्जुन के अन्तरंग जीवन, व्यक्तित्व और उनके सम्पूर्ण कृतित्व पर सृजनकर्मियों तथा समालोचकों द्वारा लिखे गए लेखों का संचयन-संकलन है। आत्म-साक्षात्कार के अन्तर्गत ‘आईने के सामने’ में बाबा नागार्जुन ने अपने ही व्यक्तित्व और सृजनधर्मी स्वभाव का खुलासा किया है। इसके अलावा मनोहर श्याम जोशी द्वारा बाबा से ली गई भेंटवार्ता तथा उनके ग्रामीण परिसर में परिवार समेत पूरे परिवेश का आँखों देखा हाल इब्बार रब्बी ने प्रस्तुत किया है। संस्मरण खंड के अन्तर्गत रामविलास शर्मा, रामशरण शर्मा मुंशी, शोभाकान्त, खगेन्द्र ठाकुर आदि की टिप्पणियाँ हैं। समालोचना खंड में अनेक ठोस साहित्यिक सन्दर्भों में तीस आलेखों का संचयन किया गया है। इन आलेखों में स्त्री विमर्श, जनोन्मुख जीवन यथार्थ, संगीत तत्त्व, मूत्र्तिमत्ता और नागार्जुन के काव्य की व्यंग्यात्मकता पर विचार किया गया है। इस खंड में अन्तिम आलेख उनके मैथिली साहित्य पर केन्द्रित है। यह किताब नागार्जुन के कृतित्व के विविध पक्षों को उद्घाटित करती है, इसीलिए यह अपनी सार्थकता रखती है।
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Binding | Hardbound |
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Publishing Year | 2014 |
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Language | Hindi |
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह
जन्म : 29 जून, 1936, बरौनी गाँव (बिहार)।
शिक्षा : पटना विश्वविद्यालय से 1959 में हिंदी एम.ए. की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान।
दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार पाठ्यक्रम में हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद से सेवानिवृत्त। आजकल जनवादी लेखक संघ के महासचिव और ‘नया पथ’ के संपादक।
कृतियाँ :
(1) आधुनिक साहित्य: विवाद और विवेचना
(2) पाश्चात्य दर्शन और सामाजिक अंतर्विरोध (सं.)
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