- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
नरक मसीहा
आधुनिक समाज के हाशियों की उपेक्षित उदासियों का अन्वेषण करनेवाले भगवानदास मोरवाल ने इस उपन्यास में मुख्यधारा की खबर ली है। वह मुख्यधारा जो किस्म-किस्म की अमानवीय और असामाजिक गतिविधियों से उस ढांचे का निर्माण करती है जिसे हम समाज के रूप में देखते-जानते हैं। उपन्यास का विषय गैर-सरकारी संगठनों की भीतरी दुनिया है, जहाँ देश के लोगों के दुःख दुकानों पर बिक्री के लिए रखी चीजों की तरह बेचे-ख़रीदे जाते हैं, और सामाजिक-आर्थिक विकास की गंभीर भंगिमाएं पलक झपकते बैंक बैलेंस में बदल जाती हैं। यह उपन्यास बताता है कि आजादी के बाद वैचारिक-सामाजिक प्रतिबद्धताओ के सत्त्व का क्षरण कितनी तेजी से हुआ है, और आज वह कितने समजघाती रूप में हमारे बीच सक्रिय है। कल जो लोग समाज के लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने की उदात्तता से दीप्त थे, कब और कैसे पुरे समाज, उसके पवित्र विचारों, विश्वासों, प्रतीकों और अवधाराणाओं को अपने हित के लिए इस्तेमाल करने लगे और वह भी इतने निर्लज्ज आत्मिविश्वास के साथ, इस पहेली को खोलना शायद आज के सबसे जरूरी कामों में से एक है।
यह उपन्यास अपने विवरणों से हमें इस जरूरत को और गहराई से महसूस कराता है। उपन्यास के पात्र अपने स्वार्थो की नग्नता में जिस तरह यहाँ प्रकट हुए हैं, वह डरावना है; पैसा कमाने के तर्क को वे जहाँ तक ले जा चुके हैं, वह एक खोफनाक जगह है-सचमुच का नरक; और जिस भविष्य का संकेत यहाँ से मिलता है, वह वीभत्स है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.