Neem Ke Patte : Dinkar Granthmala

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Neem Ke Patte : Dinkar Granthmala

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250.00 210.00

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Author: Ramdhari Singh Dinkar

Availability: 5 in stock

Pages: 62

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9789388211987

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

नीम के पत्ते

ऊपर-ऊपर सब स्वाँग, कहीं कुछ नहीं सार, केवल भाषण की लड़ी, तिरंगे का तोरण। कुछ से कुछ होने को तो आजादी न मिली, वह मिली गुलामी की ही नकल बढ़ाने को। ‘पहली वर्षगाँठ’ कविता की ये पंक्तियाँ तत्कालीन सत्ता के प्रति जिस क्षोभ को व्यक्त करती हैं, उससे साफ पता चलता है कि एक कवि अपने जन, समाज से कितना जुड़ा हुआ है और वह अपनी रचनात्मक कसौटी पर किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं। यह आजादी जो गुलामों की नस्ल बढ़ाने के लिए मिली है, इससे सावधान रहने की जरूरत है। देखें तो ‘नीम के पत्ते’ संग्रह में 1945 से 1953 के मध्य लिखी गई जो कविताएँ हैं, वे तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों की उपज हैं; साथ ही दिनकर की जनहित के प्रति प्रतिबद्ध मानसिकता की साक्ष्य भी।

अपने दौर के कटु यथार्थ से अवगत करानेवाला ओजस्वी कविताओं का यह संग्रह दिनकर के काव्य-प्रेमियों के साथ-साथ शोधार्थियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है, संग्रहणीय है।

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

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