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Description
शिवालक की घाटियों में
प्रस्तावना
‘‘शिवालक की घाटियों में’’ – जहाँ मैंने अपने जीवन का काफी हिस्सा गुजारा, जहाँ, जान हथेली पर ले-मजनू की तरह-शेरों के पीछे मारा-मारा फिरा; जहाँ के हर पेड़, हर जानवर, हर पत्थर को अपना समझा-श्रीनिधि ने एक निराली छटा दिखाई है। आपकी लेखनी, लेखनी नहीं; एक चित्रकार का यन्त्र है। इस रचना में शिवालक का वह चित्र है, जो काव्य व कविता के परदे पर खिंचा है। यह कोई शिकारी की कहानी नहीं; यह किसी ‘अनादि विरही की वाङ्मयी वेदनाध्वनि’ है।
मुझे यही अचम्भा हैं कि क्या प्रकृति देवी, अपनी गोद में बिठाकर; हर बालक को नई कहानी सुनाती है ?-कहीं, ऐसा तो नहीं; कि नदी-नालों, जीव-जन्तुओं, वृक्षों व पक्षियों का सीधा-सादा सन्देश हमेशा एक-सा ही रहता हो; अन्तर केवल सुनने वालों की भावनाओं में हो ?
जब मैं ये मनोरंजक घटनाएँ पढ़ रहा था, मेरे कानों में शिवालक की घाटियों में गूँजती हुई यह आवाज आ रही थी-
मजा जब था, जो वह सुनते
मुझी से दास्ताँ मेरी।
कहाँ से लाएगा कासिद
बयाँ मेरा, जबाँ मेरी ?
पाठको, यह पुस्तक कोई मामूली पुस्तक नहीं’; यह शिवालक का आपके लिए निमन्त्रण पत्र है।
मनोहरदास चतुर्वेदी
इंस्पेक्टर जनरल ऑव फॉरेस्ट्स,
गवर्नमेण्ट ऑव इंडिया
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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