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Description
पासंग
कनी का कलेजा ज़ोर से कबूतर की भाँति फड़फड़ाया और फिर विचलित होकर गोल-गोल घूमकर चुप वहीं बैठ गया। क्या जीते जी मरना इसी को कहते हैं ? बानोआपा जीते जी मर गयीं क्या ? तभी तो उनका चेहरा एकदम सफ़ेद बेजान सा हो गया है। हिलती-डूलती भी नहीं जैसे साँस लेना भूल गयी हों।
सच है, उस दिन दादी कह रहीं थीं कि एक पक्की ईट भी पानी में डाल दो तो वह थोड़े दिन बाद अपने आप धीरे-धीरे घुलने लगती है और एक दिन मिट्टी में बदल जाती है। ऐसे ही तो अच्छे से अच्छे लोग ज़िन्दगी के हादसों से परेशान होकर एक दिन तबाह हो जाते है, मिट जाते हैं। यह बात बानोआपा पर कितनी खरी उतरती थी। क्या बानोआपा भी एक दिन ऐसे ही मिट्टी का ढेर हो जायेंगी? सब कुछ ध्वस्त हो चुका था। चारों ओर धुआँ-धुआँ-सा था। धाँस से साँस लेना मुश्किल सा हो रहा था।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2004 |
Pulisher |
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