Pracheen Bharat Ki Neetiyan
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Description
प्राचीन भारत की नीतियाँ
हमारे आर्यावर्त देश में जनतंत्र और लोकतंत्र चलाने के लिए कैसी नीतियाँ थीं, उसके बाद कैसी नीतियाँ रहीं और अब कौन-सी नीतियाँ हैं, इस दिशा में इस ग्रंथ के संपादन एवं प्रकाशन में महत्त्वपूर्ण प्रयास किया गया है। विद्वान् सुधी लेखक ने युक्ति, तर्क, औचित्य और वैदिक धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की दृष्टि से इस ग्रंथ में उन सब संदर्भों को अलग कर दिया है, जो भेदसूचक, ऊंच-नीच द्योतक और समाज के किसी भी वर्ग के प्रति तनिक भी घृणा, विषमता व हीनता सूचक हैं।
इस ग्रंथ के संकलन के लिए भारतीय दर्शनशास्त्रों का गहराई से अध्ययन किया गया है और उसमें वैदिक धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की पृष्ठभूमि में उन ही सर्वोपयोगी नीतियों का संकलन किया है, जो समय और औचित्य की दृष्टि से आज की परिस्थितियों में भी उतनी ही तर्कसंगत और मूल्यवान हैं, जितनी प्राचीन युग में थीं।
देश की स्वतंत्राता के बाद अंतर्देशीय और अंतर्राष्ट्रीय नीति-निर्धारण में मानवीय पक्ष को ही हमारे राष्ट्र-नायकों ने सामने रखा। किसी एक वर्ग, जाति, संप्रदाय अथवा धर्म के वर्चस्व के स्थान पर उसे समानता का प्रबल आधार प्रदान किया। इसके लिए हमने चार आदर्श अपनाए। प्रथम है। लोकतंत्र, द्वितीय है। समाजवाद, तृतीय है। धर्म-निरपेक्षता और चौथा है गुट-निरपेक्षता। इस नीति-निर्धारण में हमें सबसे बड़ी सहायता भारतीय वाङ्मय की अमूल्य निधि से मिली है। हम यदि अपने प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध जीवन-मूल्यों का आधुनिक युग के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन कर सकें तो समाज उनसे लाभ उठा सकता है।
इस परिपेक्ष्य में यह ग्रंथ नेताओं, प्रशासकों और आज के प्रबुद्ध पाठक-वर्ग के लिए विशेष स्फूर्तिप्रद होता हुआ भारत के नव-समाज-निर्माण के लिए दशा-निर्देश करने में अनवरत उपयोगी सिद्ध होगा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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