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Description
प्रसाद रचना संचयन
प्रसाद के नाटकों (विशाख, स्कन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त, एक घूँट, ध्रुवस्वामिनी आदि) पर भी उनका काव्यकार पक्ष हावी रहा है और उसमें जीवन और जगत के अनिवार्य संघर्ष की मुखर अभिव्यक्ति भी सूक्ष्मतर ढंग से होती रही। चूँकि उनका काव्य-चिन्तन शैव दर्शन से प्रभावित था इसलिए भारतीय पुरूषार्थवाद के आलोक में वे मानव मन को उद्धिग्न और अंतर्मथित करनेवाले शाश्वत प्रश्नों के समुचित उत्तर भी ढूँढ़ सके। ऐसा करते हुए उन्होंने भारत की सांस्कृतिक अवधारणाओं, अभिप्रायों और प्रेरणाओं का यथोचित्त एवं रचनात्मक विनियोग किया। उनकी सृजनात्मक कल्पना जहाँ एक ओर मानवीय करूणा से सम्बद्ध और प्रतिबद्ध रही है वहाँ दूसरी ओर आनन्दवाद के प्रति समर्पित भी।
अपने विचारप्रधान निबंधों पर भी प्रसाद जी के वैदुष्य का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। विषयानुरूप भाव और भाषा के साथ ही वे अपने पाठकों का रूचि-संस्कार भी करते जाते हैं, जो उनके लेखन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। यही कारण है कि कथा-साहित्य (कहानी एवं उपन्यास) में उन्होंने प्राचीन और आधुनिक भारतीय दृष्टि का स्वस्थ समन्वय प्रस्तुत किया और उनकी मानवीय दृष्टि कभी धुँधली नहीं हुई। अड़तालीस वर्ष की छोटी-सी आयु में उनका निधन आज भी भारतीय साहित्य की अपूरणीय क्षति के रूप में याद किया जाता है।
अकादेमी को इस बात की प्रसन्नता है कि जयशंकर प्रसाद जी की चुनी हुई रचनाएँ प्रस्तुत संचयन में और एक ही जिल्द में पाठक तक पहुँच रही हैं। इस संचयन के लिए प्रतिनिधि सामग्री का संकलन हिन्दी के वरिष्ट कथाकार, नाटककार और चिन्तक श्री विष्णु प्रभाकर और प्रबुद्ध लेखक-कवि-समीक्षक श्री रमेशचन्द्र शाह ने किया है और एक उपयोगी भूमिका भी लिखी है।
आशा है, साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित अन्य संचयनों की तरह यह संचयन भी हिन्दी के सुधी पाठकों के बीच विशिष्ट स्थान बना सकेगा।
जिन भारतीय साहित्यकारों ने अपनी मौलिक प्रतिभा और रचना मनीषा द्वारा समस्त भारतीय साहित्य को आन्दोलित किया, विपुल साहित्य-सर्जना न केवल समकालीनों को बल्कि परवर्ती पीढ़ियों को भी प्रभावित किया-उनके रचना-संसार का श्रेष्ठांश सुलभ मूल पर अधिकाधिक पाठकों तक पहुँचाने का संकल्प साहित्य अकादेमी ने किया था। इस योजना के अंतर्गत भारतीय भाषाओं के विशिष्ट हस्ताक्षरों के प्रतिनिधि रचनाओं का प्रकाशन बहुत लोकप्रिय हुआ है। इन संचयनों के लिए सामग्री का चयन किसी अधिकारी विद्वान या सम्पादन-मंडल के अधीन कराया जाता है और विशद एंव विद्वात्तापूर्ण भूमिका के साथ प्रस्तुत किया जाता है जिससे कि इन विशिष्ट रचनाकारों के ऐतिहासिक योगदान और रचना कर्म को व्यापक परिदृश्य में रखकर देखा जा सके। इस योजना के अन्तर्गत हिन्दी में रवीन्द्र रचना संचयन (सम्पादक : असितकुमारक बन्द्योपाध्याय) तथा मुक्तिबोध की कविताएँ (सम्पादक : त्रिलोचन शास्त्री) का प्रकाशन किया जा चुका है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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