Premchand : Vigat Mahtta Aur Vartman Arthvatta

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Premchand : Vigat Mahtta Aur Vartman Arthvatta

Premchand : Vigat Mahtta Aur Vartman Arthvatta

250.00 210.00

In stock

250.00 210.00

Author: Murli Manohar Prasad Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 603

Year: 2006

Binding: Paperback

ISBN: 9788126712427

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

प्रेमचंद : विगत महत्ता और वर्तमान अर्थवत्ता

भारत के मौजूदा यथार्थ के सर्वग्रासी संकट के समय प्रेमचन्द का कृतित्व आलोचना से पुनर्पाठ की माँग करता रहा है। इसीलिए कथाकार, चिंतक और संपादक-पत्रकार प्रेमचन्द पर एक ऐसी समालोचनात्मक पुस्तक की जरूरत महसूस की जाती रही है जिसमें सभी महत्त्वपूर्ण देशी-विदेशी आलोचकों, राजनीतिक विचारकों तथा समाज वैज्ञानिकों के आलेखों का संचयन संभव हो। यह पुस्तक उसी अभाव की पूर्ति है और प्रेमचन्द की 125वीं वर्षगाँठ के समारोहों की श्रृंखला की एक कड़ी है। इसमें पाँच उर्दू, दो चीनी, एक जर्मन, तीन अंग्रेजी, एक रूसी और लगभग 35 हिन्दी में प्रकाशित आलोचनात्मक आलेख सम्मिलित किए गए हैं – जनार्दन झा ‘द्विज’ से लेकर अरुण कमल तक। इसके अलावा ई.एम.एस. नम्बूदिरिपाद तथा बी.टी. रणदिवे जैसे राजनीतिक-सांस्कृतिक चिंतकों, ए.आर. देसाई और पूरनचन्द जोशी जैसे समाज वैज्ञानिकों तथा सव्यसाची भट्टाचार्य जैसे इतिहासकार के आलेख भी शामिल किए गए हैं।

प्रेमचंद के बाद वाली पीढ़ियों के सृजनकर्मियों की आलोचना-दृष्टियों से भी आलोचनाकर्म समृद्ध हुआ है। प्रेमचंद को अज्ञेय, अमृतलाल नागर, निर्मल वर्मा, कुँवर नारायण आदि किस तरह देखते हैं, उनकी कृतियों में अंतर्भूत राग-संवेदना और यथार्थ की द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया को सृजन-प्रक्रिया के स्तर पर किस तरह परखते हैं – इन बातों को ध्यान में रखकर ही उल्लिखित सभी कृतिकारों के आलेख इसमें सम्मिलित कर लिए गए हैं।

संपादकों ने अपनी भूमिका में संचयन के आलेखों के प्रति सारसंग्रहवादी रुख अपनाने के बजाय आलोचनाकर्म के उन मूलभूत प्रश्नों को उठाया है जो अभी भी उलझन, मतभेद और वाग्युद्ध के लिए पर्याप्त छूट देते हैं। परम्परा के मूल्यांकन के क्रम में उठनेवाले गम्भीर सवालों की रोशनी में भूमिका के अंतर्गत विचारोत्तेजक विश्लेषण का लचीला साँचा प्रस्तुत किया गया है। दस्तावेज़ी महत्त्व के साथ-साथ यह पुस्तक प्रेमचन्द के पाठकों के लिए भी बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।

Additional information

Authors

Binding

Paperback

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Publishing Year

2006

Pulisher

Language

Hindi

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