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Description
कैदी की करामात
यहां फ्रांस देश की कहानी है। उस समय फ्रांस के पुराने राजवंश का पतन हो गया था। फ्रांस के निवासियों ने अपने देश में प्रजातन्त्र की स्थापना की थी। लेकिन प्रजातन्त्र ज्यादा दिन टिका नहीं। तुमने नेपोलियन का नाम तो सुना ही होगा। वह प्रजातन्त्र शासन में एक साधारण सेनापति था, लेकिन अपनी बुद्धि और साहस का प्रयोग करके देखते-देखते वह फ्रांस का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गया और एक दिन उसने अपने को आपको फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया।
लोग उसके आतंक से डरते थे, लेकिन एक साधारण से सिपाही को एकाएक सम्राट बनता देखकर मन ही मन उससे जलते रहते थे। इसी बीच यूरोप के देशों में फ्रांस से युद्ध छिड़ गया। लोगों ने नेपोलियन का साथ देने से आनाकानी करना शुरू किया।
नेपोलियन अकेला क्या कर सकता था ! अन्त में उसे राजगद्दी छोड़कर अलग हट जाना पड़ा। वह अल्बो नाम के एक द्वीप में चला गया और वहीं रहने लगा। इस मौके का लाभ उठाकर उसके विरोधियों ने पुराने राजवंश के एक बुड्ढे को कहीं से खोज निकाला और उसे फ्रांस के राजसिंहासन पर बैठा दिया।
लेकिन फ्रांस की जनता इससे खुश नहीं हुई। लोग नेपोलियन से डरते थे, उससे जलते थे, लेकिन साथ ही उसे चाहते भी थे। उन्होंने गुप्त रूप से नेपोलियन को फिर से लाने का उपाय सोचना शुरू किया। जनता के खास-खास नेताओं ने नेपोलियन से चिट्ठी-पत्री शुरू कर दी। इनमें कई जगह के लोग थे, जो एल्बोद्वीप से नेपोलियन के पत्र लाते थे और फ्रांस के खास-खास नेताओं के पत्र नेपोलियन के पास ले जाते थे।
फ्रांस के दक्षिण में मार्सल्स नाम का एक प्रसिद्ध बन्दरगाह है। उस समय उस नगर में मोरेल नाम का एक आदमी रहता था। वह एक बड़ा व्यापारी था। दूर-दूर के देशों में उसका व्यापार चलता था। कई जहाज़ उसका माल लादकर देश-परदेश जाते थे। इनमें से एक जहाज़ का नाम ‘फराओ’ था। इस जहाज़ में एडमण्ड दान्ते नामक एक युवक काम करता था। उसके जीवन की यह कहानी है।
जिस जहाज़ में एडमण्ड काम करता था, उसका कप्तान भी चुपके-चुपके नेपोलियन के पास चिट्ठी-पत्री लाया-ले जाया करता था। एक बार की बात है, फराओ जहाज़ कलकत्ता से माल भरकर वापस लौट रहा था। रास्ते में जहाज़ का बूढ़ा कप्तान अचानक बीमार पड़ गया। जहाज़ में जो कुछ दवाई वगैरह थी उससे उसका इलाज करने की कोशिश की गई, लेकिन देखते-देखते उसकी बीमारी बढ़ती गई।
जहाज़ के कर्मचारियों और दूसरे लोगों को लगा कि कप्तान का अन्त समय निकट आ गया है और अब वह बच नहीं सकेगा। इस बात से सबसे अधिक खुशी जहाज़ के एक खलासी को हुई, जिसका नाम था डैंग्लर्स। उस बूढ़े कप्तान के बाद डैंग्लर्स ही कप्तान बनने वाला था, क्योंकि वही सबसे बड़ा खलासी था। लेकिन दुर्भाग्यवश उसकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। एक दिन बूढ़े कप्तान ने सब लोगों को बुलाकर कहा, ‘‘मेरा अब कोई ठिकाना नहीं। किसी भी दिन ऊपर से बुलावा आ सकता है। इसलिए जब तक अपने मालिक जहाज़ के लिए किसी दूसरे कप्तान का इन्तज़ाम नहीं कर देते, तब तक के लिए मैं एडमण्ड को कप्तान बनाता हूं। आज से वही मेरा काम संभालेगा।’
यह सुनकर डैंग्लर्स की सारी इच्छाओं पर पानी फिर गया। वह कप्तान बनना चाहता था, परंतु एक दूसरे खलासी को कप्तान बना दिया गया। उसे बहुत गुस्सा आया। फौरन वह कप्तान के पास से चला आया। एडमण्ड के विरुद्ध उसका मन ईर्ष्या से भर उठा। उसने मन ही मन उससे बदला लेने का निश्चय किया। उधर जहाज़ के दूसरे खलासी एडमण्ड को बहुत चाहते थे। उन्होंने एडमण्ड को खुशी-खुशी अपना कप्तान स्वीकार कर लिया।
बूढ़े कप्तान ने एडमण्ड को कप्तान बनाने के बाद अपने कमरे में बुलाया और वहाँ खड़े दूसरे खलासियों को हाथ के इशारे बाहर जाने को कहा। सब बाहर निकल आए। डैंग्लर्स फौरन ताड़ गया कि कप्तान एडमण्ड को कोई गुप्त बात बताना चाहता है, इसलिए उसने सबको वहाँ से हटा दिया है। सब लोग हट गए, लेकिन डैंग्लर्स वहीं एक दरवाज़े के पीछे छिपकर उनकी बातें सुनने लगा।
अन्दर कप्तान ने एडमण्ड के हाथ में एक मुड़ा हुआ कागज़ दिया और कहा, ‘‘एडमण्ड, तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी। यह काम करना ही चाहिए। देखो, जब तुम देश लौटो तो पेरिस जाकर इस आदमी से ज़रूर मिलना और यह कागज़ उसे दे देना। लेकिन होशियार रहना, किसी को भी इस बारे में कुछ भी मालूम न हो।’
एडमण्ड को यह सब कुछ अजीब-सा लगा। लेकिन वह कप्तान का आदर करता था, इसलिए वह इस काम के लिए राज़ी हो गया। लेकिन उसे यह मालूम न था कि यह सब क्या है। सिर्फ़ कागज़ पर उसने नाम पढ़ा तो उस पर किसी मस्यू नोर्तिये का नाम लिखा था। साथ ही उसके घर का पता लिखा था। उसने कप्तान से कहा, ‘आप किसी बात की चिंता न कीजिए। मैं यह कागज़ ज़रूर ठीक पते पर पहुँचा दूँगा।’
कप्तान ने शान्ति की साँस ली। इधर बाहर खड़ा-खड़ा डैंग्लर्स सब सुन रहा था। उसे फरौन मालूम हो गया कि यह सब क्या मामला है। उसने ताड़ लिया कि नेपोलियन की चिट्ठी है और वह बूढ़ा कप्तान खुद नेपोलियन के पास से इस चिट्ठी को लाया है। वह मन ही मन हंसा और उसने एडमण्ड से बदला लेने की तरकीब सोचनी शुरू की। वह जानता था कि इस चिट्ठी की बात आधिकारियों को मालूम हो जाए तो एडमण्ड मुसीबत में पड़ सकता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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